कृपा सिंधु बच्चन की स्पेशल रिपोर्ट
पाकुड़ -जिले का तस्करी से बहुत पुराना रिश्ता रहा है। 1980 के दशक में पाकुड़ भी सी आर, भी सी पी और सुता की तस्करी के लिए बदनाम रहा है। उस समय जब धूलियांन -डाकबंगला से टमटम ही पाकुड़ तक आने का साधन था। उस समय टमटम के बैठने वाली जगह के नीचे के बॉक्स में तस्करी के समान पाकुड़ आता था, रास्ता भी एकमात्र था। आज दर्जनों रास्ते हैं, और सैकड़ों साधन है आने जाने के, इसलिए ड्रग्स बेधड़क यहाँ पहुँच रहा है। बंगलादेश और नेपाल से आसानी से ड्रग्स पश्चिम बंगाल के कालियाचक पश्चिम बंगाल पहुँचता है, और कोरियर उसे पाकुड़ पहुँचा जाता है।
पिछले दिनों मुफस्सिल थाने एरिया में 5 जने ड्रग्स के साथ एक स्कूल प्रांगण से पकड़े गए थे। सभी लड़के अल्पसंख्यक समुदाय से थे। पहले से लेकर अब तक अल्पसंख्यक समुदाय के लोग ही तस्करी के कार्यों से जुड़े देखे गए, उसका सबसे बड़ा कारण बंगलादेश से घुसपैठ, पारिवारिक रिश्ते सीमा पार भी होना और भाषाई समानता इसे और आसान बना देता है।
लेकिन अब ये मिथक टूट चुका है और यहाँ ये सिलसिला बदला है, ड्रग्स सीमा इसपार तो पुराने तरीकों से ही पहुँचता है, लेकिन पाकुड़ में सिर्फ़ अल्पसंख्यक इस धंधे में सामिल नहीं हैं, बल्कि सामाजिक समरसता के लिए मशहूर पाकुड़ में ड्रग्स के कारोबार ने इस सामाजिक समरसता को और मजबूत किया है। समरसता से यहाँ किसी को शिकायत नहीं, लेकिन सभी समुदायों के युवा इस ड्रग्स की चंगुल में फँस कर देश के भविष्य को अंधकार में धकेल रहे हैं। कालियाचक के कोरियर पाकुड़ में ड्रग्स पहुँचा कर चन्दन के टीके पर भी तस्करी की कालिख़ लगा रहे हैं, और यहीं मालपहाड़ी रोड पर पहुँच वाले परिवार की ये चन्दन में लिपटी कालिख़ देवता के मन्नतों से मिले आशीषों यानी पूरे युवा वर्ग को नशे के अंधकार के रास्ते अकाल मौत के मुँह में धकेल रहा है।
80 के दशक में कई टमटम वालों को बड़ा उद्योगपति बनते देख उन्हें अपना आदर्श मान चुके आज के युवा इस नशे के कारोबार के रास्ते धनपति बनने की फ़िराक़ में मौत के अंधे कुएँ का ये सामान पूरे झारखंड को परोस रहे हैं। ख़ास कर पाकुड़ की एक बड़ी युवा आबादी इस नशे का आदि बन चुका है। तक़रीबन हर समुदाय और वर्ग का युवा का परिवार और अभिवावक सशंकित है। युवा पैसे के अभाव में नशे तक अपनी पहुँच बनाये रखने के लिए छोटे-मोटे अपराध की राह भी पकड़ चुके है। युवा वर्ग आक्रामक और आक्रोश की गिरफ़्त में भी महसूस किये जा रहे हैं। ये ड्रग्स के नशेड़ी युवा बाहर अपराध की मानसिकता के बीच लड़ाई झगड़े तो करते ही हैं, इनसे घर के लोग भी परेशान हैं। इन्हें नशे न करने की घरेलू सलाह घरवालों को इनके कोप का शिकार बनाये हुए है। माता पिता तक को जलाकर मार देने की बात कहते हैं।
ड्रग्स के चंगुल के साथ ये युवा समाज, परिवार, देश और अपने भविष्य के लिए बोझ और खतरा बन गये हैं। ऐसे युवाओं पर प्रशासनिक कड़ाई और क्रूरतम करवाई जरूरी है। कब कहाँ ऐसे युवाओं की ड्रग्स की जरूरत किसी लोमहर्षक घटना का कारण बन जाय कहना मुश्किल है। कई ऐसे जगह हैं, जहाँ युवाओं को इसके गिरफ्त में जाते देखा जा सकता है।
उसपर अभी तहकीकात जारी है, लेकिन अभी तक की जानकारी बताती है कि नगर में नगर थाना के सामने रथमेला मैदान का अंधकार इन्हें बहुत भाता है। स्टेडियम जैसे रात्रि एकांत जगह सहित नगर में कई ऐसे सम्मानित रहे घर हैं, जहाँ कुछ विनिमय पर ड्रगिष्टों को स्थान उपलब्ध कराया जाता है, जो एक भयावह भविष्य की ओर संकेत करता है। ऐसे समाज के कोढों से निपटने के लिए पुलिस को उत्तरप्रदेश की नीति अपनानी चाहिए। ऐसे भी ऐसे बोझ समाज, परिवार, प्रदेश और देश के लिए किसी काम के नहीं।