अबुल काशिम@समाचार चक्र
पाकुड़। क्रिकेट में अब वो माहौल नहीं रहा, वो जुनून और जोश भी नहीं दिखता। पहले की तरह ना खिलाड़ियों में वो जोश और ना दर्शकों में वो जुनून है। यह अलग बात है कि कई होनहार खिलाड़ी क्रिकेट में भविष्य तलाश रहे हैं और जमकर पसीना बहा रहे हैं। लेकिन तीन दशक पहले नब्बे के दशक का वो जुनून और जोश गायब है। एक छोटे से शहर में आठ से दस टीमें होती थी। दिनभर खिलाड़ियों का प्रैक्टिस चलता था। जिदातो मिशन का मैदान दिनभर व्यस्त रहता था। रानी ज्योतिर्मयी स्टेडियम में सुबह से प्रैक्टिस शुरू हो जाती थी। एक साथ चाय की चुस्की लेने वाले अलग-अलग टीमों के खिलाड़ी एक दूसरे को शिकस्त देने के लिए जी जान लगा देते थे। कालिकापुर, सिंधीपाड़ा, राजापाड़ा, भगत पाड़ा, तलवाडांगा जैसी टीमें हुआ करती थी। एक एक खिलाड़ी टीम को जीत दिलाने के लिए जोश-खरोश में होते थे। रानी ज्योतिर्मयी स्टेडियम में वो शानदार टूर्नामेंट का आयोजन आज भी यादों से नहीं मिटते। मैच देखने के लिए जगह तलाशने पड़ते थे। दर्शकों की खचाखच भीड़ में एक बार जगह चली गई तो दूसरी बार मिलना मुश्किल हो जाता था। फाइनल सेमीफाइनल में तो बड़ी मुश्किल से जगह मिल पाती थी। अपने घरों के छतों से मैच देखने का नजारा भी कौन भुल सकता है। जहां से मंगू सिंह और राकेश कछैला के छक्के वाली शानदार शॉट की गेंदे मैदान में वापस आती थी। अकेले दम पर मैच का रुख बदल देने की क्षमता रखने वाले उस वक्त के युवा और बेहतरीन ऑल राउंडर सेलूकश त्रिवेदी, भाई दा और राजा चौबे का वो गर्मजोशी, बल्लेबाजों को परेशान करती सोना दास के गेंदबाजी का वो रफ्तार, पाकुड़ क्रिकेट में इतिहास रचने वाले शतकवीर ओपनर बल्लेबाज राकेश कछैला की ताबड़तोड़ बल्लेबाजी, स्वर्गीय मानिक चक्रवर्ती की वो विकेट कीपिंग का अंदाज, बापी दास का ब्रेक डांसिंग स्टाइल में कीपिंग का नजारा, गणपत सिंह की विकेट कीपिंग का वो अलग अंदाज, मिडिल ऑर्डर के मिस्टर डिपेंडेबल बल्लेबाज डाबू दास की कलात्मक बल्लेबाजी, पार्थो चौबे, विद्युत ओझा, प्रमोद नागलिया, लड्डू, प्रकाश खेमानी, राजू खेमानी, अमित सिंह, असिताभ दास, राकेश साह, पिंटू सिंह, निलय, निलेश, राजेश त्रिवेदी, बिन्नी, स्वर्गीय राजेंद्र यादव, रमेश, दीनू, टार्जन मध्यान, मुन्ना भगत, रितेश पटेल, पंकज मिश्रा, मनोज साह, सोमेन घोष, समीर कछैला, यादव बंधु अजय यादव, आनंद यादव और अमित यादव, ताराशीष, मंगू सिंह, गणपत सिंह, रानू सिंह, प्रकाश जैसे खिलाड़ियों के दर्शकों को स्टेडियम आने के लिए मजबूर करने वाली खेलने के अंदाज को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। इन सब के बीच अमित सिंह बॉबी और प्रमोद नागलिया की वो कमेंट्री को कैसे भूल सकते हैं, जिसके आज भी क्रिकेट प्रेमी दीवाने हैं। मैदान में गाजे-बाजे के साथ पहुंचने वाले दर्शक, पूरे मैदान में दर्शकों की खचाखच भीड़ से निकलती शोरगुल और हर गेंद पर आतिशबाजी और भीड़ के बीच बड़ी मुश्किल से पहुंचने वाले गुड़ के कटकटी और बादाम वाले फेरी वाले भाइयों को यादों से मिटाना भी मुश्किल है। तब के क्रिकेट को माहौल देने वाले दर्शकों का खेल और खिलाड़ियों के प्रति सम्मान और आयोजन को सफल बनाने में दर्शकों के सहयोग भी हमेशा यादों में बसे रहेंगे। जिन्हें कमिटी की ओर से फाइनल के समापन पर सम्मानित भी किया जाता था। पूरे टूर्नामेंट में हर टीम के खिलाड़ियों का उत्साह बढ़ाने वाले उन दर्शकों की यादें भी हमेशा बनी रहेगी, जिनकी ओर से हर बॉल और हर ओवर में पुरस्कारों की घोषणा होती थी और खेल के अंत में खिलाड़ियों को पुरस्कृत भी करते थे। ये घोषणाएं भी खिलाड़ियों के साथ-साथ दशकों को रोमांचित करता था।
Maqsood Alam
(News Head)
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