समाचार चक्र डेस्क
पाकुड़। पत्थर माफियाओं ने खुद की महल बना ली और खुले खदानों में गरीबों को मरने के लिए छोड़ दिया। जिन खदानों को पत्थर उत्खनन के बाद भरकर जाना था, उसे यूं ही छोड़ दिया गया। पत्थर खदानों को भरकर खेती के लायक बनाना था। ताकि रैयत उस पर खेती-बाड़ी कर जीवन यापन कर सकें। लेकिन पत्थर माफियाओं को सिर्फ अपने महल बनाने से मकसद था, उन्हें रैयत या आसपास रह रहे ग्रामीणों से कोई वास्ता नहीं था। इसलिए पत्थर खदानों को खाली छोड़ दिया गया। पत्थर माफियाओं के करतूतों ने ग्रामीणों को इस कदर डर के साए में जिंदगी भर के लिए जीने को छोड़ दिया कि दिलो दिमाग से डर हटता ही नहीं होगा। यहां बात हो रही है मालपहाड़ी पत्थर उद्योग क्षेत्र की, जहां एक बार नजर दौड़ाएंगे तो पत्थर माफियाओं की करतूतें दिख जाएंगे। यहां का भयावह दृश्य से हर किसी का शरीर सिहर उठेगा। पत्थर माफियाओं ने लीज एरिया से हटकर पत्थर उत्खनन कर सड़क को भी लगभग खत्म कर दिया। पीपरजोड़ी, राजबांध, कान्हूपुर, सालबोनी, सालपतरा, खपराजोला, खुंटापाड़ा गांव में खदानों का दृश्य देखकर रूह कांप उठेगा। अगर पास से गुजरेंगे तो खदान का दृश्य देख खुदवा खुद कदम लड़खड़ा जाएंगे। आसपास रहने वाले ग्रामीण खुद की चिंता तो करते ही हैं, अपने बच्चों के खदान में गिरने का डर दिलों दिमाग में बैठा रहता है। अगर थोड़ी सी भी चूक हुई तो जान जाना लगभग तय है। पत्थर माफियाओं ने विशेष कर सालबोनी और सलपतरा में जो हाल किया है, वह और भी खतरनाक है। पत्थर खदानों की गहराई देख कर ही रुह कांप उठेगा। शहर के एक बड़े पत्थर व्यवसाई और चर्चित चेहरे ने यहां खदानों से पत्थर उत्खनन कर सड़क को भी लगभग खत्म कर दिया है। इतना ही नहीं गांव के कुछ लोगों ने नाम न छापने के शर्त पर बताया कि एक छोटा पीपरजोड़ी गांव हुआ करता था, उस गांव में 60 से 70 परिवार निवास करते थे। उस पत्थर माफिया ने उस गांव को भी उजाड़ दिया। आज छोटा पीपर जोड़ी गांव का नाम भले ही कागजों में हो, लेकिन धरातल पर यह गांव गायब है। शहर के एक नामचीन पत्थर व्यवसाई और कई अन्य व्यवसाई और कंपनियों ने यहां के गरीबों की कभी फिक्र नहीं की। प्रशासन अगर ईमानदारी से मापी कराएं तो पत्थर माफियाओं की कलई खुल सकती है। लोगों में चर्चा है कि जिस समय पत्थर माफिया नियम कानून को धता बताकर लीज से हटकर सरकारी सड़क, जमीन, गांव को उजाड़ रहे थे, उस दौरान लोग जागरुक नहीं थे। प्रशासन के लोग भी कार्रवाई नहीं करते थे। यहीं वजह है कि आज मालपहाड़ी पत्थर उद्योग क्षेत्र में सैंकड़ों फीट गहरी दर्जनों खदानें हैं, जिन्हें पत्थर निकालने के बाद भरा नहीं गया। आज वो खदानें लोगों की जिंदगियां लील रही है। लोग डर के साए में जीने को मजबूर हो रहे हैं। प्रशासन को एक बार चल कर देखना चाहिए और अनुमान लगाना चाहिए कि किस कदर पत्थर माफियाओं ने अपनी अलमीरा भरने के लिए दूसरों की जिंदगी से खिलवाड़ किया। यहां तक कि सरकारी जमीन, सड़क और रैयती गांव को भी उजाड़ने का काम किया। यहां ना एनजीटी के निर्देशों का पालन किया गया और ना ही पत्थर खनन में नियमों का ध्यान रखा गया। आज उन्हीं पत्थर माफियाओं को जब एनजीटी जुर्माना लगाती है, तो एनजीटी को भी चुनौती देने से पीछे नहीं हटते।
आज भी सड़क से सटाकर हो रहा पत्थर उत्खनन
आज भी सलपतरा सालबोनी में गांव जाने वाली मुख्य सड़क से सटाकर पत्थर उत्खनन किया जा रहा है। पत्थर खदान और सड़क की दूरी जीरो है। इतना ही नहीं, ये खदान भी गांव से लगभग सटा हुआ है। कुछ ही दूरी पर सरकारी स्कूल भी संचालित है। प्रशासन को इस पर कार्रवाई करनी चाहिए। ताकि सड़क, गांव और स्कूल को नुकसान नहीं पहुंचे।
