अबुल काशिम@समाचार चक्र
पाकुड़। भूमि अधिग्रहण के पेंच में फंसे एक परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है। अधिग्रहित जमीन से लॉक हटने के इंतजार में परिवार ने दस साल की बीमार बच्ची को खो दिया है। वहीं बेटी की शादी का कर्ज भी चुका नहीं पा रहा है। इतना ही नहीं पैसों के अभाव में मृत बच्ची का श्राद्ध कर्म में भी परेशानियां आ रही है। एक तरफ सरकारी सिस्टम को सरल बनाने का दावा किया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर अपनी ही जमीन से लॉक हटाने के लिए दफ्तरों का चक्कर काट रहे हैं। अब तो दफ्तरों के चक्कर काटते काटते घुटने भी टेक दिए हैं। यह मामला सदर प्रखंड अंतर्गत नरोत्तमपुर पंचायत के वन विक्रमपुर गांव के एक ऐसे परिवार का है, जिन्हें तीन साल से सरकारी बाबुओं के द्वारा दफ्तरों का चक्कर लगवाया जा रहा है। अब तो थक-हारकर हाथ पर हाथ धरे घर में ही बैठ गए हैं। दरअसल करीब तीन साल पहले वन विक्रमपुर गांव की 64 वर्षीय बुजुर्ग महिला रोमिला देवी, 63 वर्षीय बुजुर्ग महिला पोमिला देवी तथा 44 वर्षीय रघुनाथ यादव से पाकुड़ बड़हरवा सड़क निर्माण के लिए सात कट्टा जमीन अधिग्रहण किया गया था। इसके लिए सरकारी नियम अनुसार जमीन को लॉक कर दिया गया। जिससे जमीन की रजिस्ट्री पर रोक लग गई। इसका सीधा-सीधा मतलब यह है कि ये जमीन तब तक किसी के नाम हस्तांतरित नहीं किया जा सकता था, जब तक कि लॉक नहीं हट जाता। अधिग्रहित जमीन के बदले सरकारी मुआवजा की राशि तो मिल गई, लेकिन जमीन से लॉक नहीं हटाया गया। इसका खामियाजा परिवार को बीमार बच्ची की मौत के रूप में चुकानी पड़ी। बेटी की शादी में लिए कर्ज चुकाने की चिंता अलग से खाई जा रही है।
क्या कहते हैं रैयत
इधर बुजुर्ग महिला रोमिला देवी, पोमिला देवी और रघुनाथ यादव ने बताया कि पाकुड़ बड़हरवा सड़क किनारे वन विक्रमपुर मौजा संख्या- 11, जमाबंदी संख्या- 34, दाग संख्या- 632 में 02 बीघा 09 कट्ठा जमीन है। जिसका खतियानी रैयत गयामुनी घोषाईन है और हम सभी वंशज है। रोमिला देवी और पोमिला देवी के स्वयं के नाम से और रघुनाथ यादव के माता यशोदा घोषाईन के नाम से रजिस्टर टू में दर्ज है। इसी जमीन का कुछ हिस्सा पाकुड़ बड़हरवा सड़क निर्माण के लिए तीन साल पहले अधिग्रहित किया गया था। जिसका मुआवजा भी हमें मिल चुका है। लेकिन तीन साल बीत गए, आज तक जमीन से लॉक नहीं हटाया गया। जिस वजह से अपनी संपत्ति रहते हुए भी शादी, इलाज या दैनिक खर्च के लिए बेच नहीं पा रहे हैं। बताया कि एक साल पहले घर की एक बेटी की शादी के लिए इस उम्मीद से कर्जा लिया था कि जमीन बेचकर कर्ज चुका देंगे। लेकिन जमीन नहीं बेच पा रहे हैं। जिस वजह से कर्ज देने वालों के सामने खड़ा तक नहीं हो पा रहे हैं। जिन-जिन लोगों से कर्ज लिया था, उनसे संपत्ति रहते हुए भी आंख नहीं मिला पा रहे हैं। इससे बड़ी अफसोस की बात क्या हो सकती है कि जमीन रहते हुए भी बीमार बच्ची का अच्छा इलाज नहीं करा पाए। जिससे दस साल की बच्ची को हम लोगों ने खो दिया। इधर बच्ची का श्राद्ध कर्म के लिए भी पैसों की कमी की वजह से परेशान है। बच्ची के श्राद्ध कर्म के लिए भी कर्ज लेना पड़ रहा है। अपनी संपत्ति रहते हुए भी कर्ज में डूबते जा रहे हैं। लॉक हटाने के लिए सरकारी दफ्तरों का चक्कर काटते काटते थक चुके हैं। गत 16 मई को उपायुक्त को आवेदन देकर जमीन से लॉक हटाने का अनुरोध किया था। उपायुक्त की ओर से कार्रवाई करते हुए आवेदन को विभाग के पास भेज भी दिया गया। लेकिन विभाग के टेबुल में आवेदन महिनों से पड़ा हुआ है। आवेदन पर आगे की कार्रवाई की जानकारी के लिए बाबूओं के दफ्तर का चक्कर काट रहे हैं। लेकिन वहां से किसी तरह की जानकारी नहीं दी जा रही है। उपायुक्त से गुजारिश है कि जमीन से लॉक हटाकर हमारी परेशानी को दूर करें।