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Maqsood Alam
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साल 2024: अप्रिय घटनाओं से सांप्रदायिक सौहार्द घायल तो हुआ, पर उपद्रवियों की मंशा पर फेर गया पानी

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Gunjan Saha
(Desk Head)

कृपा सिंधु बच्चन@समाचार चक्र
पाकुड़। दिसंबर में खड़े हो जब, पाकुड़ पीछे झांकता है, तो एक ऐतिहासिक भाईचारे, प्रेम और सौहार्द की कहानी गौरवान्वित करता नजर आता है। छिटपुट घटनाओं को अगर छोड़ दें, तो साम्प्रदायिक तनाव की कोई कहानी दूर तलक अतीत में नजर नहीं आती। लेकिन 2024 ने इस बाबत पाकुड़ को काफी शर्मिंदा किया। इस साल 2024 में विभिन्न कारणों ने पाकुड़ के साम्प्रदायिक सौहार्द को घायल किया। हांलांकि कुशल प्रशासनिक सक्रियता और कार्रवाइयों ने घायल भावनाओं की अतीत को ज्यादा चोटिल तो नहीं होने दिया, लेकिन तात्कालीन उत्पन्न परिस्थितियों ने यहां की अमनपसंद जनता को एक अस्वाभाविक अहसास जरूर कराया। कुछ पल तो ऐसा लगा कि पाकुड़ और यहां के साम्प्रदायिक सौहार्द और प्रेम को किसी की नजर लग गई हो। पर प्रशासन की तकनीकी तथा संतुलित कार्रवाइयों ने इसमें कड़ाई से पूर्णविराम लगा दिया।उधर महेशपुर के गायबथान में जमीनी विवाद को लेकर आदिवासी और मुस्लिम के बीच जमकर विवाद और खूनी संघर्ष ने यहां की जनता को चौंका दिया। पाकुड़ सदर ब्लॉक के गोपीनाथपुर में बकरीद पर्व को लेकर हिन्दू मुस्लिम विवाद, बंगाल के असामाजिक तत्वों के द्वारा पुलिस पर हमला, हिन्दुओ पर हमला, गोली फायरिंग, बमबाजी और आगजनी की घटना ने तो मानो पाकुड़ को झंकझोर दिया। बहुत ही मामूली सी आपसी कहासुनी को एक नहर के उसपार से आये बंगाल के लोगों ने एक बड़ी साम्प्रदायिक घटना का रूप दे दिया। पुलिस पर भी पत्थरबाजी आदि सबकुछ ने मानो यहां नोमेन्स लेंड जैसी परिस्थितियों का अहसास कराया। पाकुड़ सदर ब्लॉक के तारानगर पंचायत के उल्लुपाड़ा में सोशल मीडया पर आपत्तिजनक फोटो डालने के बाद उत्पन्न विवाद को भी आपसी नासमझी और बाहरी हस्तक्षेप ने विषाक्त बना दिया।हांलांकि प्रशासन ने उपद्रवियों की मंशा पर पानी फेर दिया। लेकिन राजनीति को एक बना बनाया मैदान मिल गया। ठीक विधानसभा चुनाव से पहले हुई इन घटनाओं पर जमकर राजनीति भी हुई।लेकिन अगर कोई लहूलुहान हुआ तो पाकुड़ की शांति और सकून। 8 दिसंबर 1992 के अपवाद को अगर नजरअंदाज कर दें तो पाकुड़ सौहार्द का हमेशा उदाहरण रहा है। हर बार प्रशासन ने भी बखूबी अपनी भूमिका निभाई है और वो भी इसलिए संभव हो पाया क्योंकि यहां समाज के हर पहलू में शांति और सौहार्द की पहल करने वाले लोगों की संख्या उपद्रवियों से ज्यादा है। लेकिन कुल मिलाकर 2024 की कुछ अप्रिय घटनाओं ने पाकुड़ को जहां एक ओर शर्मिंदा किया। वहीं प्रशासन की तकनीकी ढंग से सक्रियता ने गौरवशाली शांति का अहसास भी कराया। इन घटनाओं ने राजनीति को कितना पोषण दिया, इसपर अगली कड़ी परोसूंगा।

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