अबुल काशिम@समाचार चक्र
पाकुड़। झारखंड या झारखंड से बाहर, यूं कहे कि पूरे देश में जिस रुप में पाकुड़ जिले की पहचान कोयला और पत्थर के लिए है, वहीं पहचान फॉसिल्स (जीवाश्म) को लेकर भी है। पाकुड़ में फॉसिल्स खोज का इतिहास लगभग 35 साल पुरानी है। यानी करीब साढ़े तीन दशक पूर्व पाकुड़ में फॉसिल्स की खोज की गई थी। इतने सालों बाद भी इस ऐतिहासिक धरोहर को सहेज कर रखने के लिए जहमत नहीं उठाई गई। किसी ने भी जीवाश्म के सुरक्षित रख-रखाव के लिए ठोस कदम नहीं उठाया। यही वजह है कि इस ऐतिहासिक धरोहर के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि अगर यही स्थिति रही तो यह ऐतिहासिक धरोहर एक दिन विलुप्त हो जाएगा। फॉसिल्स को सहेज कर रखने में सरकार ने भी कोई पहल नहीं किया। प्रशासन की ओर से भी ठोस पहल नहीं हुई। यह अलग बात है कि पाकुड़ के तत्कालीन वन प्रमंडल पदाधिकारी (डीएफओ) रजनीश कुमार ने फॉसिल्स को सुरक्षित रखने के लिए पहल शुरू किया था। उन्होंने वन विभाग के कार्यालय के सामने खाली पड़े जमीन पर फॉसिल्स पार्क निर्माण के लिए प्रस्ताव पर काम भी शुरू किया। लेकिन बाद में यह प्रयास भी ठंडे बस्ते में पड़ा रह गया।

डीसी मनीष कुमार से जगी आस, फॉसिल्स पार्क निर्माण की मांग
पाकुड़ के वर्तमान डीसी मनीष कुमार के कार्य प्रणाली से खुश पाकुड़ की जनता में एक बार फिर आस जगी है। विशेषकर जीवाश्म वैज्ञानिक और छात्रों को डीसी मनीष कुमार से फॉसिल्स पार्क निर्माण को लेकर ज्यादा उम्मीदें हैं। कॉलेज और स्कूलों में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं को उम्मीदें हैं कि वर्तमान डीसी मनीष कुमार फॉसिल्स पार्क निर्माण की दिशा में पहल जरूर करेंगे। उनकी ओर से फॉसिल्स पार्क निर्माण की मांग भी की जाने लगी है।

डॉ बीडी शर्मा ने की थी जीवाश्म की खोज
भागलपुर के तत्कालीन प्रोफेसर डॉ बीडी शर्मा ने लगभग 35 वर्ष पूर्व पाकुड़ प्रखंड के सोनाजोड़ी गांव और अमड़ापाड़ा ब्लॉक में जीवाश्म का पता लगाया था। इस संबंध में केकेएम कॉलेज पाकुड़ के वनस्पति विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष रहे डॉ प्रोसेनजीत मुखर्जी बताते हैं कि राजमहल हिल्स का इलाका तब से जीवाश्म के लिए विश्व के मानचित्र में उभर कर आया, जब देश के जाने माने जीवाश्म वैज्ञानिक डॉ बीरबल साहनी ने राजमहल के पहाड़ियों से पेंटोसाइलों, डेंडिसिलों और विशेषकर विलियमसोनिया सीवर्डियना नामक जीवाश्म की खोज की। राजमहल की पहाड़ियों को पुराने वनस्पतियों के जीवाश्मों का भंडार कहा जा सकता है।पाकुड़ में जीवाश्म का पाना कोई नई घटना नहीं है। पाकुड़ के सोनाजोड़ी में कई एकड़ भूभाग में फैले जीवाश्मों का बिखरा पड़ा होना, इस बात का संकेत है।भागलपुर के तत्कालीन प्रोफेसर डॉ बीडी शर्मा ने लगभग 35 वर्ष पूर्व अमड़ापाड़ा से डेंडोसाइलों आम्रपरेंसिस और पाकुड़ के ही सोनाजोड़ी से डेंडोसाइलों सोनजोरेंसिस नामक जीवाश्मों की खोज की और शोध पत्र में प्रकाशित भी किया। इन दोनों जीवाश्मों के बारे में डॉ प्रोसेनजीत मुखर्जी का कहना है कि इन शोध के बारे में संत गाडगे बाबा अमरावती विश्वविद्यालय के डॉ वीए वैज्ञानी ने 2011 में आयोजित अलाहाबाद विश्वविद्यालय में एक बोटेनिकल कॉन्फ्रेंस के दौरान बताया था। डॉ प्रोसेनजीत मुखर्जी ने कहा कि इलाहाबाद से लौटने के बाद मैंने लगातार सोनाजोड़ी क्षेत्र का भ्रमण अपने छात्रों के साथ कर वहां के जीवाश्मों को बचाने के प्रयासों की कवायद की। आज पाकुड़ के ऐतिहासिक जीवाश्मों को सहेजने की कवायद होना चाहिए, ताकि जीवाश्म के शोध के क्षेत्र में पाकुड़ को राष्ट्र स्तर के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय मानचित्र में अपना स्थान बना सके सतत शोधार्थी क्षेत्र का भ्रमण करें और हमारा जीवाश्म संरक्षित रहे। डॉ प्रोसेनजीत मुखर्जी ने कहा कि आज भी डॉ बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पालियों बॉटनी लखनऊ में राजमहल क्षेत्र के सैंकड़ों जीवाश्म रखे पड़े हैं।
फॉसिल्स (जीवाश्म) क्या है
जीवाश्म, किसी जीवित जीव या उसके व्यवहार के भूगर्भीय रूप से बदलने वाले अवशेष होते हैं। ये पृथ्वी की सतहों या चट्टानों की परतों में पाए जाते हैं। जीवाश्मों के अध्ययन को पैलियोन्टोलॉजी कहते हैं। जीवाश्म कई प्रकार के होते हैं। इनमें शरीर के जीवाश्म, जैसे हड्डियां, दांत, पंख, पत्तियां, फल, फूल, मेवे वगैरह,ट्रेस जीवाश्म, जैसे पैरों के निशान, ट्रैकवे, तैरने के निशान, बिल या मांद, जड़ के निशान और कोप्रोलाइट्स (जीवाश्म मल) शामिल हैं। जीवाश्मों से जुड़ी कुछ और बातें ये भी है कि जीवाश्मों से पता चलता है कि पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत कैसे हुई। जीवाश्मों से पता चलता है कि उस समय का वातावरण कैसा था। जीवाश्मों से पता चलता है कि उस समय के जीवों का स्वरूप कैसा था। जीवाश्मों से यह भी पता चलता है कि उस समय के जीवों का व्यवहार कैसा था।