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Maqsood Alam
(News Head)

पेट की आग बुझाने तीन साल की उम्र में दिल्ली भागे शहाबुद्दीन 14 साल बाद घर लौटा

मां-बाप के गुजर जाने के बाद बड़ी बहन और भाई के साथ घर से भाग गया था शहाबुद्दीन

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Gunjan Saha
(Desk Head)

अबुल काशिम@समाचार चक्र
पाकुड़। एक-दो नहीं, बल्कि 14 साल बीत गए थे, जब शहाबुद्दीन शेख अपनी बड़ी बहन और भाई के साथ घर से भाग गया था। तब शहाबुद्दीन की उम्र मुश्किल से 3 साल के आसपास रहा होगा। उसकी बड़ी बहन की उम्र करीब 7 साल और भाई की उम्र 5 साल के आसपास ही रही होगी। इतनी कम उम्र में तीनों एक साथ घर से कोई शौक से नहीं भागा था, बल्कि गरीबी और लाचारी ने घर से भागने पर मजबूर कर दिया था। माता-पिता के देहांत के बाद घर की माली हालत इतनी खराब हो गई कि, 60 साल की बुढ़ी दादी के लिए बच्चों को पालना मुश्किल हो गया था। पेट की आग बुझाने के लिए दूसरों के आगे हाथ फैलाने के सिवा कुछ भी नहीं बचा था। इतनी कम उम्र में भी बच्चों को शायद किसी के आगे हाथ फैलाना अच्छा नहीं लगा होगा और उस परिस्थिति में घर से भाग जाना ही एकमात्र रास्ता दिखा होगा। तभी तीनों ने घर से भागने का मन बना लिया। इधर करीब 14 साल बाद शहाबुद्दीन घर लौटता है और अपनी 73 साल की दादी सायरा बीवी से मिलता है। दोनों की आंखें भर आती है। आंखों में खुशी के आंसू छलक पड़ते हैं। एक-दूसरे से लिपटकर बस खुशी के आंसू रोए जा रहे हैं। अभी भी विश्वास नहीं हो रहा है कि इतने सालों बाद दादी पोता का इस तरह मिलना हो रहा है। जिस पोते के इंतजार में दादी की आंखें तरस गई थी, आज उनका पोता उनके पास था। महज 3 साल की उम्र में घर छोड़ने वाले शहाबुद्दीन को भी यकीन ही नहीं रहा था कि आज इस तरह से दादी से मिल रहा है। यह ऐसा नजारा था, जिसने वहां मौजूद हर किसी को रुला रहा था। इतने सालों बाद 17 साल की उम्र में जब शहाबुद्दीन का घर वापसी होता है और अपनी 73 साल की दादी से मिलता हैं, तो उस दौरान की दादी पोते के मिलने की तस्वीर को आप और हम सहज ही महसूस कर सकते हैं। इन सबके बीच दादी पोते को मिलाने में जिला बाल कल्याण समिति पाकुड़ और जिला बाल संरक्षण इकाई पाकुड़ की सराहनीय भूमिका को भी भला कोई कैसे भूल सकता हैं। जिनके अथक प्रयास और ठोस पहल से 14 साल से बिछड़े दादी पोते को मिलाना संभव हो पाया। दादी पोते को मिलाने में जिला बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष डॉ शंभू कुमार, सदस्य रतन सिंह उर्फ पिंटू सिंह, सुबीर भट्टाचार्य और रंजना श्रीवास्तव की भूमिका प्रशंसनीय रहा है। इसमें जिला बाल संरक्षण इकाई की सामाजिक कार्यकर्ता स्टीला बास्की, परामर्शी वीना और ऑपरेटर मदन की भी कागजी प्रक्रिया में सराहनीय भूमिका रही है। इस पूरे घटनाक्रम को लेकर बाल कल्याण समिति पाकुड़ के सदस्य रतन सिंह उर्फ पिंटू सिंह ने बताया कि शहाबुद्दीन शेख 3 साल की उम्र में अपनी बड़ी बहन और भाई के साथ पेट की आग बुझाने की मजबूरी में आकर घर से भाग गया था। तीनों के माता-पिता के निधन के बाद घर की माली हालत काफी खराब हो गई थी। घर में सिर्फ इन बच्चों की बुजुर्ग दादी ही बची थी, जो उम्र की वजह से बच्चों के पालन पोषण के लिए सक्षम नहीं थी। उन्होंने घर लौटे शहाबुद्दीन के हवाले से कहा कि तीनों जब घर से दिल्ली भाग रहे थे, तब वह और भाई पकड़े गए थे। तब से दोनों चिल्ड्रन होम फॉर बॉयज और कस्तूरबा निकेतन लाजपत नगर नई दिल्ली में रह रहा था। भाई अभी आफ्टर केयर में कोई चीज का ट्रेनिंग ले रहा है। वहीं बहन ने शादी कर ली है। इधर रतन सिंह उर्फ पिंटू सिंह ने बताया कि पाकुड़ मुफस्सिल थाना क्षेत्र के जयकिस्टोपुर गांव के रहने वाली दादी सायरा बीवी ने तो लौटने या इस तरह से मिलने की उम्मीद ही छोड़ दी थी। उन्हें लगने लगा था कि अब कभी जिंदगी में बच्चों से उनका मिलना संभव नहीं हो पाएगा। बाल कल्याण समिति पाकुड़ और बाल संरक्षण इकाई पाकुड़ के प्रयासों से दोनों को मिलाया गया। पिंटू सिंह ने बताया कि दिल्ली मयूर विहार सीडब्लूसी से बातचीत और जिला बाल संरक्षण इकाई की सामाजिक कार्यकर्ता स्टीला बास्की के सामाजिक सर्वेक्षण प्रतिवेदन सौंपने एवं दादी सायरा बीवी के पहचान पर नई दिल्ली के बाल कल्याण समिति के आदेश से दिल्ली पुलिस के द्वारा बाल कल्याण समिति के कार्यालय में शहाबुद्दीन को प्रस्तुत किया गया। इसके बाद आवश्यक कागजी प्रक्रिया पूरी कर शहाबुद्दीन को उनकी दादी सायरा बीवी को सौंप दिया गया।

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