समाचार चक्र संवाददाता
पाकुड़। आदिवासी छात्र-छात्राओं ने शनिवार को विश्व आदिवासी दिवस धूमधाम से मनाया। इस अवसर पर केकेएम कॉलेज में समारोह का आयोजन किया गया। कॉलेज के मल्टीपरपज हॉल में आयोजित समारोह में विश्व आदिवासी दिवस मनाने का उद्देश्य और आदिवासी समाज के विकास पर मंथन हुआ। उद्घाटन मुख्य अतिथि अपर समाहर्ता जेम्स सुरीन, बीडीओ समीर अल्फ्रेड मुर्मू, प्राचार्य डॉ युगल झा, मनरेगा बीपीओ अजीत टुडू एवं कॉलेज के शिक्षक शिक्षिकाओं ने दीप जलाकर किया। आयोजित समारोह में छात्र-छात्राओं ने पारंपरिक नृत्य और गायन से समां बांध दिया। जिसमें आदिवासी संस्कृति और परंपरा की झलकियां दिखाई दी। इस अवसर पर बीडीओ समीर अल्फ्रेड मुर्मू ने संथाली भाषा में गीत प्रस्तुत कर समाज की संस्कृति और परंपराओं को ताजा किया। अपर समाहर्ता जेम्स सुरीन ने अपने संबोधन के जरिए आदिवासी समाज की प्राचीन संस्कृति और परंपराओं की याद दिलाते हुए छात्र-छात्राओं को उसे आगे बढ़ाने की अपील की। अपर समाहर्ता ने कहा कि पहले तो हमें आदिवासी शब्द का अर्थ को समझना होगा। आदिवासी समाज की जो प्राचीन संस्कृति और परंपराएं हैं, उसे जानना होगा। उन्होंने कहा कि आदि का मतलब काफी सालों से और वासी का मतलब निवास करने वाला, इन दो बातों को हमें समझने की जरूरत है। आदिवासी समाज तब से निवास कर रहे हैं, जब चारों तरफ पेड़ पौधे और जंगल ही जंगल थे।


आसान नहीं था इस तरह के वातावरण में जीवन यापन करना। उन्होंने कहा कि किस तरह जंगल में रहकर भी हमारे पूर्वज जीवन यापन करते थे, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि लोग हमें बनवासी या जंगल में रहने वाले भी कहते हैं। हमारे समाज ने उस स्थिति में भी जीने का मतलब सिखाया। आपको समझना होगा कि उस स्थिति में किस तरह से हमारे पूर्वज जीते होंगे। उन्होंने कहा कि पूर्वजों ने हमें जो परंपराएं दी जो संस्कृति सिखाई है, पहनावा से लेकर खानपान का तरीका सिखाया है, आज हम कहीं ना कहीं उन चीजों को भूला रहे हैं और अनायास ही एक परिवर्तन सा दिखने लगा है। लेकिन हमें अपनी संस्कृति और परंपराओं में परिवर्तन मंजूर नहीं है। उन्होंने कहा कि जो हमारी पहचान है, जिस संस्कृति और परंपराओं के लिए हम जाने जाते हैं, उसे बदल नहीं सकते। अन्यथा हमारा समाज विलुप्त हो जाएगा। इसलिए हमें प्रण लेना है कि हम अपने आर्थिक स्थिति में बदलाव जरूर लाएंगे, लेकिन प्राचीन परंपरा और संस्कृति को भी जीवित रखेंगे। इसे आसान शब्दों में कह सकते हैं कि हम अपनी प्राचीन परंपरा और संस्कृति को साथ लेकर आर्थिक रूप से समाज में बदलाव लाएंगे। अपर समाहर्ता जेम्स सुरीन ने छात्र-छात्राओं से अपील करते हुए कहा कि हमारे पूर्वजों ने हमें जो परंपरा सिखाई है, जो संस्कृति दी है, उसे नहीं खोना है। तभी आप अपने अगली पीढ़ी को अपनी समाज की परंपरा और संस्कृति को सीखा सकते हैं। अगर आप ही उसे बनाकर नहीं रखेंगे तो फिर अपनी अगली पीढ़ी को क्या देंगे। इससे तो समाज की परंपरा और संस्कृति खत्म हो जाएगी। आयोजित समारोह में बीडीओ समीर अल्फ्रेड मुर्मू ने भी आदिवासी संस्कृति और परंपरा को बचाए रखने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि आज पूरे विश्व में आदिवासी दिवस मनाया जा रहा है। इसके पीछे हमारी संस्कृति और हमारी परंपरा को न सिर्फ याद करना, बल्कि उसे आगे बढ़ाना भी मुख्य उद्देश्य है। विश्व आदिवासी दिवस हमें अपने समाज की उत्थान के लिए आगे आने और एकजुट रहने की प्रेरणा देता है।
