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Maqsood Alam
(News Head)

नगर परिषद की चार और योजनाओं में टेंडर मैनेज का खेल शुरू, सरकार के खजाने में चोट की जुगत में ठेकेदार

नगर परिषद की अहम भूमिका की भी चर्चा

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Gunjan Saha
(Desk Head)

समाचार चक्र संवाददाता

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पाकुड़। नगर परिषद पाकुड़ हाल ही में टेंडर मैनेज की बातों को लेकर खास चर्चा में रहा। मीडिया में भी टेंडर मैनेज की खबरें सुर्खियों में रही। तीन-तीन योजनाओं का टेंडर मैनेज की चर्चाओं ने खुब सुर्खियां बटोरी। इस चर्चें में ठेकेदार की खास भूमिका तो रहा ही, नगर परिषद की भूमिका पर भी सवाल उठते रहे। इधर चार और नई योजनाओं के टेंडर मैनेज का खेल भी शुरू हो चुका है। सूत्रों के मुताबिक टेंडर मैनेज के लिए ठेकेदारों की बैठकों का दौर जारी है। नगर परिषद में सक्रिय जितने भी ठेकेदार है, सभी दावेदारी पेश कर रहे हैं। एक दूसरे को मनाने में जुटे हुए हैं। अगर टेंडर मैनेज का यह खेल भी सफल होती है, तो यह सीधे तौर पर सरकार के खजाने पर एक और चोट होगा। बता दें कि इसी महीने 11 नवंबर को खोले गए टेंडर तब ज्यादा चर्चा में आई, जब इसमें बेहद कम ठेकेदारों की भागीदारी सामने आई। आमतौर पर ठेकेदारी लेने के लिए मान्यता प्राप्त संवेदकों की भीड़ लग जाती है। परिमाण विपत्र की खरीदारी के लिए लाइन खड़ी हो जाती है। लेकिन तीनों योजनाओं के लिए परिमाण विपत्र की खरीदारी और टेंडर डालने में जिन ठेकेदारों ने रुचि दिखाई, उनकी संख्या महज दो ही थी। सूत्रों की माने तो तीनों योजना में महज दो-दो संवेदक ने ही टेंडर प्रक्रिया में हिस्सा लिया। यह कहीं ना कहीं टेंडर मैनेज की बातों को साबित करने के लिए काफी है। इसमें नगर परिषद की भूमिका पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। जिसकी चर्चा चौक चौराहों पर हो रही है। इधर सूत्रों का दावा है कि चार और योजनाओं में टेंडर मैनेज का खेल शुरू हो चुका है।

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इन योजनाओं का निकाला है टेंडर

नगर परिषद से जिन योजनाओं का टेंडर निकाला गया है, उनमें 9 लाख 89,977 रुपए का शेड निर्माण, गेट रिपेयर एवं अन्य निर्माण कार्य, 6 लाख 81,407 रुपए का डीसी कैंप का दीवाल रिपेयरिंग व अन्य कार्य, 9 लाख 99,492 रुपए का डीसी कैंप वार्ड नंबर दो में शेड निर्माण व अन्य निर्माण कार्य तथा 5 लाख 76,960 रुपए का वार्ड नंबर दो में गोपनीय शाखा के पास शेड निर्माण व अन्य कार्य शामिल है। इन योजनाओं में टेंडर मैनेज के लिए कवायत तेज हो गई है। इन योजनाओं के लिए 22 नवंबर को नगर परिषद में परिमाण प्रपत्र की बिक्री होगी। निविदा यानी टेंडर 24 नवंबर को दोपहर 3:00 तक डाला जाएगा और इसी तारीख को 3:30 बजे तक टेंडर खोला जाएगा। अब देखना होगा कि इन योजनाओं की टेंडर प्रक्रिया में कितने ठेकेदार दिलचस्पी दिखाते हैं।

कैसे होता है टेंडर मैनेज का पूरा खेल और सरकार को लगाता है राजस्व का चुना

नियम अनुसार किसी योजना का जब टेंडर निकलता है, तो उस योजना का एक प्राक्कलन राशि तय रहती है। उसी प्राक्कलन राशि के हिसाब से परिमाण विपत्र की भी एक कीमत तय होती है। इसी तय कीमत पर संवेदक को परिमाण विपत्र खरीदना पड़ता है। यह राशि सीधे सरकार के खजाने में राजस्व के रूप में जमा हो जाता है। यह राशि संवेदक को टेंडर मिलने या नहीं मिलने की किसी भी परिस्थिति में वापस नहीं मिलती है। उपरोक्त चारों योजनाओं में किसी एक योजना को उदाहरण के तौर पर ले सकते हैं। अगर 9 लाख 89,977 रुपए का शेड निर्माण, गेट रिपेयर एवं अन्य निर्माण कार्य की इस योजना की ही बात करें तो इसके टेंडर प्रक्रिया में भाग लेने के लिए ठेकेदार को निर्धारित 5000 देकर परिमाण विपत्र खरीदना पड़ेगा। यहीं राशि सरकार के खजाने में राजस्व के रूप में जमा होगा। अब खेल यहीं से शुरू होता है। अगर टेंडर मैनेज पर सहमति बन गई, तो महज फॉर्मेलिटी पूरा करने के लिए अधिकतम दो ठेकेदार ही परिमाण प्रपत्र खरीदेंगे। ये दो वही ठेकेदार होंगे, जिनकी अन्य ठेकेदारों के साथ टेंडर मैनेज पर सहमति बन गई हो। आमतौर पर टेंडर मैनेज नहीं होने की स्थिति में ज्यादा से ज्यादा ठेकेदार परिमाण प्रपत्र खरीदेंगे। इसका मतलब जितने ज्यादा ठेकेदार प्रपत्र खरीदेंगे, सरकार को उतना ही राजस्व का फायदा होगा। लेकिन जब टेंडर मैनेज पर सहमति बन जाता है, तो इस तरह षड्यंत्र रचकर सरकार को राजस्व का नुकसान पहुंचाया जाता है। अब आगे बढ़ते हैं और सरकार को लगने वाले कुछ और नुकसानों की बात करते हैं। आमतौर पर किसी योजना या टेंडर के लिए ठेकेदारों के बीच कंपटीशन सी रहती है। इस स्थिति में ठेकेदार 10 फीसदी से लेकर 25-30 फीसदी या इससे भी अधिक रेट या बिलो में टेंडर डालते हैं। इसका मतलब है कि इतने फीसदी रुपए की सरकार को बचत हो गई। लेकिन जब मैनेज पर सहमति बन जाती है, तो सरकार को यह फायदा नहीं मिलता है। यूं कहे कि यह फायदा ठेकेदार के जेब में चला जाता है। इस तरह समझा जा सकता है कि टेंडर मैनेज के खेल से ठेकेदार सरकार को किस तरह नुकसान पहुंचा रहा है। इसमें ठेकेदारों के साथ-साथ नगर परिषद की बड़ी भूमिका की भी चर्चाएं हैं।

कार्यपालक पदाधिकारी ने कहा

नगर परिषद के कार्यपालक पदाधिकारी अमरेंद्र कुमार ने कहा कि ऐसा नहीं है।बाहर ठेकेदारों के बीच क्या होता है, इसमें हम लोग कोई इंवॉल्व नहीं है।

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