कृपा सिंधु बच्चन की रिपोर्ट
पाकुड़ । पिछले दिनों देश के गौरव और संथाल परगना के शहीद सिद्धो कान्ह, चांद भैरव और फूलों झानो की शहादत पर गर्व करते हुए हमने हूल दिवस मनाया। हूल की गवाही देता मार्टिलो टावर की छांव में लहलहाता सिद्धो कान्हू मुर्मू पार्क पाकुड़, पिछले तकरीबन छह हफ़्तों से बंद पड़ा है।
शहीदों की याद में स्थित यह पार्क नगर परिषद के अंतर्गत आता है। समय समय पर नगर परिषद इसे लीज पर देता है।जिसमें लीजधारी इस पार्क में प्रवेश शुल्क के साथ सभी उम्र वर्गों के मनोरंजन का ख्याल रखते हुए इसका रखरखाव भी करते हैं। स्वाभाविक रूप से यह पार्क बच्चों के मनोरंजन, युवाओं के विहार स्थल और बुजुर्गों के व्यायाम, योग आदि स्थल के रूप में जाना जाता है। पाकुड़ में चारों ओर नगरीय सभ्यता के बीच दूर तलक अगर हम नजर फेरें तो आमलोगों के मनोरंजन की कोई व्यवस्था नही है। यहां तक कि जो दो सिनेमा हाल पाकुड़ के पास थे वो भी इस डिजिटल युग में मंदी की मार झेल टूट कर बिखर गया। हॉल मालिकों की अपनी व्यक्तिगत आर्थिक विवशता के कारण सिनेमा हाल पाकुड़ से क्षीण गया। इस ऐतिहासिक बहुत पुराने होलो को कई स्तर पर हुई उदासीनता के कारण बचाया नही जा सका।
पाकुड़ में लोग होली, दशहरा, ईद और बकरीद जैसे त्योहारों पर अपने पूरे परिवार के साथ अब एक मात्र सिद्धो कान्हू मुर्मू पार्क का रुख करते हैं। लेकिन छह हफ़्तों से बंद पार्क के आंगन में इस बार बकरीद को भी फीका कर दिया। धार्मिक दृष्टिकोण से आमलोगों ने मजहबी मेल मिलाप और एकता के साथ यह पर्व तो मनाया लेकिन अपनी छुट्टियों का उत्सव इसबार इस पार्क में जाकर नही मना पाए। ग्रामीण क्षेत्रों से हजारों परिवार बन्द के अनभिज्ञता से पार्क घूमने तो आये लेकिन लटकते तालों को देखकर वापस लौट गए। वो तो देश के एकता के आंगन में उत्सवों का एक ऐसा ताना बाना है कि लोग रथ मेला घूमकर ही संतोष कर गए लेकिन सवाल ये उठता है कि आखिर छह हफ़्तों से बंद पार्क को खोलने के लिए अबतक कोई सार्थक प्रयास होता नही दिखा। इस विषय पर शासन प्रशासन और स्वयं नगर परिषद तो चिंतित है लेकिन परिणाम ढाक के तीन पात है।
क्यों है पार्क बंद–
स्वाभाविक रूप से नाम के अनुसार और अठारह सौ पचपन के संताल विद्रोह का रणक्षेत्र रहा यह पार्क सिद्धो कान्हू मुर्मू के नाम पर है। मुर्मू परिवार के छह भाई बहनों सहित हजारों संतालों ने अंग्रेज शासन का विरोध करते हुए अपने सीने पर गोलियां खाई थीं। लेकिन अफसोस यह है कि हमारे यह गर्व के ऐतिहासिक स्थल पर स्थित शहीदों की मूर्तियों को हम सुरक्षित नही रख पाते। पार्क में स्थित सिद्धो कान्हू की मूर्तियों के साथ अराजक तत्व आये दिन छेड़छाड़ करते हैं। जिससे मूर्ति को नुकसान पहुंचता है। और फिर आदिवासी समाज इसका उग्र विरोध करता है। हर बार सड़कें जाम होती है। जुलूस निकाला जाता है। और फिर उसके बाद मामला किसी समझौते और मूर्तियों के सुदृढ़ीकरण के साथ बात खत्म हो जाती है। लेकिन इस बार मूर्तियों की सुरक्षा को पुख्ता करने के लिए आदिवासी समाज ने सीसीटीवी कैमरा सहित अन्य व्यवस्थाओं की मांग लेकर जोरदार विरोध करते हुए पार्क में ताला जड़ दिया है।
आदिवासी नेता मार्क बास्की का कहना है कि जो लेसी पार्क में स्थित मूर्तियों की सुरक्षा नही कर सकता ऐसे लेसी हमें मंजूर नही। श्री बास्की का कहना है कि लेसी को बदलते हुए ऐसी व्यवस्था की जाए की सीसीटीवी आदि के छांव में पार्क और मूर्तियों की सुरक्षा निश्चित हो सके।
उधर लेसी बताते हैं कि पार्क की सुरक्षा के लिए जो साधन सरकार एवं नगर परिषद द्वारा उन्हें उपलब्ध कराई गई है उसके दम पर वे सुरक्षा की भरसक प्रयास करते हैं। लेकिन अराजक तत्व स्वभाविक रूप से अराजकता फैला जाते हैं। ऐसे में वे विवश हो जाते हैं। बात जो भी हो शहीदों की मूर्तियों के साथ छेड़छाड़ बर्दाश्त के काबिल नही। लेकिन अपने गौरवशाली इतिहास से रूबरू होने के लिए पार्क का खुलना भी आमजनता के लिए जरूरी है। लेसी की विवशता और आदिवासी नेताओं की मांग दोनों किसी कीमत पर नकारा नही जा सकता। इस लिए प्रशासन को चाहिए कि कोई ऐसा रास्ता निकाले जिससे आदिवासी नेताओं की मांगे पूरी हो सके।
फोटो–बन्द पड़ा सिद्धो कान्हू पार्क