कृपा सिंधु बच्चन@समाचार चक्र
पाकुड़ । पांच वर्षों के लंबे अंतराल के बाद अमड़ापाड़ा में बीजीआर और डीबीएल कोल कंपनी ने कोयला उत्खनन और सम्प्रेषण शुरू किया। स्थानीय बेरोजगारों को एक लंबे अंतराल के बाद जो आशा रोजगार के किरण के रूप में झलकी थी, उसमें उक्त दोनों कंपनियों ने स्थानीय बेरोजगारों को निराश किया। दोनों कंपनियों ने यहां के बेरोजगारों के साथ घिनौना मजाक जैसे करतूतों को भी करने से गुरेज नहीं की।
उदाहरण के तौर पर इन कंपनियों ने नौकरी दिलाने के नाम पर एएफएस इंटेंट इंडिया प्राइवेट लिमिटेड सिक्युरिटी एजेंसी ने सिक्युरिटी गार्ड के लिए कुछ युवाओं को बुलाया। बीते 14 मार्च को उन युवाओं को चयनित घोषित करते हुए वर्दी भी उपलब्ध कराई। अंदर ही अंदर क्या खिचड़ी पकी की युवाओं को बेआबरू कर उपलब्ध कराई गई वर्दी कुछ घंटे में वापस ले ली। जैसे किसी के सामने थाली परोस कर खींच ली जाए। ऐसी मनःस्थिति में बेरोजगार हुए सभी युवा किंकर्तव्य विमूढ़ सा दिखे।
एक बार पुनः 28 मार्च चयन प्रक्रिया के लिए युवाओं को बुलाया गया। बेरोजगारी का दंश झेलते सैकड़ो युवा कंपनी कार्यालय पहुंचे, जहां कड़ी धूप में उन्हें दो बजे तक इंतजार कराया गया। उसके बाद कंपनी ने अपना कार्यालय बंद कर दिया और गोपनीय तरीके से सभी कर्मचारी नौ दो ग्यारह हो गए।
एक तो बेरोजगारी की मार उसपर किसी कंपनी द्वारा युवा मन को दिए जाने वाले इतने जिल्लत के बाद नाराज युवकों ने कोयला परिवहन को ठप कर दिया। बीडीओ, सीओ, पुलिस निरीक्षक ने युवकों को समझाने का प्रयास किया। लेकिन लगातार मानसिक रूप से ठगे जा रहे युवाओं ने पदाधिकारियों की बातों को सुनने से इनकार कर दिया।
नतीजन सड़क जाम चलता रहा। यहां तक की नाराज बेरोजगार जवानों ने सड़क पर ही खाना बनाकर खाना और अपनी दैनिक दिनचर्या को शुरू कर दिया। बात स्पष्ट थी कि युवकों के दिल को इतनी चोट लगी थी कि जाम को परिणाम तक पहुंचाने के लिए वे संकल्पित थे। नतीजन सत्ताईसवें घंटे में प्रशासन को समझा बुझाकर जाम हटाने में सफलता मिली। लेकिन डब्लूबीपीडीसीएल और बीजीआर के अधिकारी रामशीष चटर्जी तथा संजय बेसरा ने अगले 15 अप्रैल तक युवकों द्वारा प्रस्तुत डिमांड को बिंदुवार हल करने का आश्वासन दिया। युवकों ने भी असंतोष के बाद भी एक और मौका कोल कंपनियों को दिया और कोयला परिचालन शुरू हो गया। लेकिन इससे पहले भी पैनम कोल माइंस ने भी स्थानीय बेरोजगारों को रोजगार न मिलने का असंतोष गहरा रहा था।
इसबार भी इन दोनों कंपनियों ने कई बार तो बातचीत की, लेकिन पता नहीं स्थानीय बेरोजगारों को डायरेक्ट रोजगार देने में इन कंपनियों को परहेज क्यों है। कोल कंपनियों की ऐसी रवैए से उनके मंशा पर सवाल खड़े हो रहे हैं। कई बार पैनम के समय से ही यहां की कोयले की क्वालिटी और उसपर तय रॉयल्टी पर बात उठ चुकी है। कहीं न कहीं इनसब बातों की विवेचना करने पर ऐसा प्रतीत होता है कि कोयले की खनन से जुड़ी कई अनियमितताएं स्थानीय स्तर पर लोगों पर पता न चल सके, इसलिए स्थानीय बेरोजगार युवकों को सीधे रोजगार देने में इससे पहले और अभी की कंपनी भी उदासीनता दिखा रही है।हालांकि कुछ बिचौलिए सरीखे लोग जो विभिन्न व्यवसाय से जुड़े हैं, कहते तो यहां तक है कि कलमकारों की भी इसमें उपस्थिति है। ऐसे लोग नहीं चाहते कि स्थानीय बेरोजगार कंपनी में घुसे और सभी बातें जान सके। ऐसे स्थानीय बेरोजगार अब इतने आंदोलित हो चुके हैं कि कंपनी की तो बात ही छोड़ दें, समय आने पर रोजगार के नाम पर स्थानीय बिचौलियों को भी बख्शा नहीं जाएगा। बात जो भी हो फिलवक्त कोयले का खनन, परिवहन और सम्प्रेषण चल रहा है। लेकिन 15 अप्रैल तक का इंतजार है।