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Maqsood Alam
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धूमधाम से निकाली गई रथयात्रा, उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़

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Gunjan Saha
(Desk Head)

समाचार चक्र संवाददाता

पाकुड़। पाकुड़ में शुक्रवार को रथ यात्रा धूमधाम से निकाली गई। भगवान बलभद्र, सुभद्रा एवं जगन्नाथ रथ पर सवार होकर मौसी बाड़ी पहुंचे। जिला मुख्यालय के राजा पाड़ा के अलावा हिरानंदनपुर, कालिकापुर, महेशपुर, हिरणपुर सहित अन्य स्थानों से भी रथयात्रा निकाली गई। कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच रथ यात्रा में हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं ने हिस्सा लिया। अहले सुबह से ही श्रद्धालु भगवान बलभद्र सुभद्रा एवं जगन्नाथ की पूजा अर्चना करने राजा पाड़ा पहुंचने लगे थे। इस मौके पर दूर-दराज से रथयात्रा में हिस्सा लेने श्रद्धालु पहुंचे थे। इधर रथयात्रा को लेकर प्रशासन पूरी तरह से मुस्तैद थी। पुलिस के जवान रथयात्रा की सुरक्षा में तैनात थे। एसपी निधि द्विवेदी स्वयं व्यवस्था का जायजा ले रही थी। उन्होंने सुरक्षा को लेकर कड़ा निर्देश दिया था। वहीं खबर प्रेषण तक कहीं से भी किसी भी तरह के अप्रिय सूचनाएं नहीं थी।

सदियों पुरानी है पाकुड़ की रथयात्रा

पाकुड़ में रथ यात्रा का इतिहास सदियों पुरानी है। ऐतिहासिक पन्नों को अगर पलटा जाय तो बताया जाता है कि 16 वीं सदी के उत्तरार्ध से रथयात्रा की परंपरा यहां चली आ रही है। यह अलग बात है कि समय के साथ यात्रा के स्थानों में परिवर्तन जरूर हुआ है, लेकिन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पूजन एवं यात्रा के उत्साह में कहीं कमी नहीं आई है। सदियों पहले रथ यात्रा कहते हैं कि जिले के लिट्टीपाड़ा प्रखंड स्थित कंचनगड़ पहाड़ की तलहटी में होता था। कहते हैं कि कालांतर में हिरणपुर के मोहनपुर में यह यात्रा राजवंश के स्थानांतरण के बाद होने लगा। फिर राजा पृथ्वीचंद शाही के समय रजवाड़ी वर्तमान पाकुड़ नगर के राजापाड़ा में भव्य रूप से बनाया गया। रजवाड़ी के साथ-साथ भगवान मदनमोहन और रुक्मणि के मंदिर , नित्यकाली मंदिर, सिंहवाहिनी मंदिर सहित पूरे राजापाड़ा में तंत्र पर आधारित विभिन्न भैरव के रूप में विभिन्न स्थानों पर 108 शिवलिंगों की स्थापना हुई। सभी जाति धर्म के लोगों को स्टेट में उनके कार्य के अनुसार निवास तथा खेती की जमीनें दी गई। परंपराओं के अनुसार यहां 1826 से रथ यात्रा की भी शुरुआत हुई। स्थान बदला लेकिन परंपरा की कड़ी नहीं टूटी। रथयात्रा में आदिवासियों की उपस्थिति भी पहले की तरह कायम रही। अगर कुछ बदला तो मेले का स्वरूप बृहत हो गया और आसपास के राज्यों के लोगों की उपस्थिति ने इसे और रोचक बना दिया। पहले की तरह ही रथ राजापाड़ा के कालीमंदिर प्रांगण से निकल कर नगर भर्मण करता है। दशकों पहले रथ और मदनमोहन रुक्मणि के साथ रानी ज्योतिर्मयी स्टेडियम में आठ दिनों तक मौसी बाड़ी प्रवास के दौरान रुकता था, लेकिन अब वापस नित्य काली मंदिर प्रांगण में ही लौट कर काली मंदिर के अपने रंगमहल में मदनमोहन और रुक्मणि प्रवास पर रहतीं हैं। आठवें दिन उल्टा रथ के नाम से जानेवाले परंपरागत नाम से वापसी करते हैं। इस दौरान सुबह शाम विशेष आरती तथा पूजन होता है, जिसमें पूरे नगर के लोग भाग लेते हैं। पीतल के रथ की रस्सी खींच श्रद्धालु स्वयं को धन्य समझते हैं। छोटी राजवाड़ी नगर थाने के सामने मैदान में मास पर्यंत एक बड़े मेले का आयोजन भी होता है। हमेशा की तरह इस बार भी रथ यात्रा बहुत शांति के साथ संम्पन्न हुआ। इस यात्रा की पाकुड़ में विशेषता यह है कि यहां कभी किसी तरह की भेदभाव के बिना सभी समाज के लोग नगरीय उत्सव के रूप में शदियों से मनाते आ रहे हैं।

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