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Maqsood Alam
(News Head)

साल भर से ठप पेयजलापूर्ति योजना, गर्मी में भी नहीं बुझा पा रहा लोगों की प्यास

सफेद हाथी बनकर रह गया है करोड़ों का यह परियोजना

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Gunjan Saha
(Desk Head)
ललन झा@समाचार चक्र
ललन झा@समाचार चक्र

अमड़ापाड़ा परेशान जनता की सुविधा के लिए सरकार मुफ्त संसाधन मुहैया कराती है। संसाधन पर बड़ी राशि खर्च होती है। अमूमन वैसा संसाधन जो सीधे जनहित से जुड़ा हो, मालिक भी जनता ही होती है। एक संगठन, समिति, क्लब या सोसायटी उस संसाधन की रक्षा करती है। निगरानी व निर्वहन करती है। चूंकि, सरकार, प्रशासन या विभाग हर सरकारी संपत्ति पर नजर नहीं रख सकती।

उदाहरण में यहां स्थित ग्रामीण पेयजलापूर्ति योजना की बात की जा रही है। सरकार ने अमड़ापाड़ा बाजार – संथाली सहित बासमती व पास – पड़ोस के गांव, टोलों – मुहल्लों के करीब 15 सौ परिवारों के प्यास बुझाने का स्थायी व्यवस्था दिया। विडंबना कही जाय कि निर्माण के करीब पांच वर्षों में इस वाटर प्रॉजेक्ट से जनता को पेयजल आपूर्ति का नियमित लाभ या अबाध सेवा अबतक नहीं मिल पाया है। वजह कुछ खास नहीं सिर्फ उदासीनता व लापरवाही है। सिर्फ अपनी अपनी जिम्मेवारी से बचने एवं समन्वय व तालमेल की कमी में यह योजना महज सफेद हाथी बन कर रह गया है।

धूप और गर्मी में भी नहीं बुझा पा रहा लोगों का प्यास

पिछले वर्ष के मई माह से ही यह परियोजना पूर्णतः ठप है। लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। हालात यथावत है। लोग अब भी कूप, चापानल, नदी आदि पारंपरिक जलस्रोतों से अपने हलक की प्यास बुझाने को मजबूर हैं। अब धूप की तपिश बढ़ चुकी है। जलस्रोत सूखने लगे हैं। जल की किल्लत शुरू हो चुकी है।

संघर्षरत सोसल एक्टिविस्ट भी हुए हताश

लक्षित परिवारों को इस योजना के समुचित व नियमित लाभ बदिलाने को लेकर बुजुर्ग नरेशकान्त साह का कभी धरना तो कभी अनसन। अमूमन अधिकारियों के समक्ष मजबूती से अपनी बात रखने अथवा निरंतर पत्राचार करने के बावजूद भी परिणाम अपेक्षित नहीं रहा। एक्टिविस्ट श्री साह को निराशा ही हाथ लगी। हालांकि वो कर्तव्यपथ पर अब भी डंटे हुए हैं।अब इस परियोजना के नियमित संचालन व देखरेख के लिए उन्होंने स्थानीय प्रशासन से ऑपरेटर और गार्ड की मांग किया है। बहरहाल, अब देखना यह है कि इस प्रतिकूल मौसम में भी यह प्रॉजेक्ट जनता को किस हद तक लाभ दे सकता है।

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