अबुल काशिम@समाचार चक्र
पाकुड़। सदर प्रखंड अंतर्गत संग्रामपुर पंचायत की अपनी अलग पहचान रही है। यहां भाईचारा और आपसी सौहार्द को मिसाल के तौर पर देखा जाता है। यह पंचायत बुद्धिजीवी और शिक्षाविदों के लिए भी जाना जाता है। पंचायत का सीना चीर कर गुजरती रेल लाइन और पंचायत से सटा तिलभिठा रेलवे स्टेशन ने भी संग्रामपुर को खास पहचान दिलाई। तिलभीठा रेलवे स्टेशन से रेलवे को सालाना करोड़ों का राजस्व भी मिलता है। तिलभीठा रेलवे स्टेशन के आसपास के गांवों में कई दशकों तक चलने वाली पत्थर उद्योग से भी संग्रामपुर पंचायत को खास पहचान मिली है। जहां अरबों रुपए का राजस्व का फायदा रेलवे और राज्य सरकार को भी मिली और मिल रही है।
जिसमें खास तौर से संग्रामपुर के ग्रामीणों का खून पसीना मिला हुआ है। इतना कुछ देने वाले संग्रामपुर पंचायत को सरकार ने हमेशा से नजरअंदाज ही किया है। इसी का नतीजा है कि यहां की बेटियां आठवीं के बाद पढ़ाई छोड़ने को मजबूर हो रही है। अविभाजित बिहार की बात करें या अलग राज्य का दर्जा हासिल करने के बाद बने झारखंड की बात करें, संग्रामपुर गांव के विकास में किसी ने भी दिलचस्पी नहीं दिखाई।
यही वजह है कि ग्रामीणों को आजादी के 78 साल में भी हाई स्कूल तक नसीब नहीं हुआ। इससे छात्रों को मैट्रिक की पढ़ाई पूरी करने में जो तकलीफें उठानी पड़ रही है, वो सिर्फ छात्र ही महसूस कर सकते हैं। झारखंड सरकार और स्थानीय जनप्रतिनिधियों की कमजोर इच्छा शक्ति और वोट बैंक की राजनीति ने खासकर लड़कियों का भविष्य अंधकार में धकेलने का काम किया। पंचायत में हाई स्कूल नहीं होने की वजह से आठवीं के बाद लड़कियों की पढ़ाई रुक गई। आठवीं कक्षा तक पढ़ाई पूरी कर घर में बैठ गई। आगे की पढ़ाई का सपना अधूरा ही रह गया।
यह विडंबना ही है कि हाई स्कूल के इंतजार में कई पीढ़ियां गुजर गई, पर किसी ने भी जहमत नहीं उठाई। नेताओं से लेकर विभाग ने भी हाई स्कूल की स्वीकृति दिलाने में कोई पहल नहीं किया। अगर स्थानीय तौर पर देखा जाए तो पूर्व उप प्रमुख बुद्धिजीवी जुलहास मंडल ने हर कोशिश करके देख लिया, लेकिन हर जगह निराशा ही हाथ लगी। अंत में वे भी थक हार कर बैठ गए। अब एक बार फिर से हाई स्कूल की मांग उठने लगी है और इस बार पंचायत के शिक्षित युवाओं ने हाई स्कूल के लिए आवाज बुलंद कर दिया है।
एमएससी और बीए की डिग्री हासिल करने वाले युवा परवेज आलम, मोईदुल इस्लाम, शाहबाज आलम ने सोशल मीडिया पर हाई स्कूल की मांग को जोरदार तरीके से उठाया है। इन युवाओं ने बताया कि संग्रामपुर में एक प्राइमरी स्कूल (नव प्राथमिक विद्यालय) और एक मिडिल स्कूल है। मिडिल स्कूल से हर साल सैकड़ों बच्चें निकलते हैं। लेकिन पंचायत में हाई स्कूल नहीं होने से अधिकतर बच्चें बीच में ही पढ़ाई छोड़ देते हैं। इनमें अधिकतर लड़कियां होती है। जिन्हें मां-बाप गांव से काफी दूर दूसरे गांव में संचालित हाई स्कूल भेजने से कतराते हैं। युवाओं ने कहा कि संग्रामपुर में हाई स्कूल का होना बेहद जरूरी है। इसके लिए सरकार को ठोस कदम उठाने चाहिए। अन्यथा संग्रामपुर पंचायत की बेटियां मैट्रिक की पढ़ाई भी नहीं कर पाएगी। इधर पूर्व उप प्रमुख बुद्धिजीवी जुलहास मंडल ने कहा कि संग्रामपुर अपने आप में एक घना आबादी वाला पंचायत है। इससे ठीक सटा हुआ कुमारपुर पंचायत भी है। दोनों पंचायत को मिलाकर तकरीबन पच्चीस हजार की आबादी है। इन दोनों पंचायत के बच्चों के लिए हाई स्कूल की सुविधा नहीं है। उन्होंने कहा कि संग्रामपुर मिडिल स्कूल से हर साल कम-से-कम दो सौ बच्चें आठवीं बोर्ड देकर निकलते हैं। इनमें अधिकतर लड़कियां भी शामिल होती है। लड़के तो बड़ी मुश्किल से किसी तरह दूसरे पंचायत या शहर में जाकर हाई स्कूल में एडमिशन करा लेते हैं। लेकिन लड़कियां दूर जाने में कतराती हैं और यह स्वाभाविक रूप से सच्चाई भी है। इस तरह लड़कियां आठवीं के बाद पढ़ाई छोड़ने के लिए मजबूर हो जाती है। यह अलग बात है कि जागरूकता की कमी और सामाजिक कारणों से भी लड़कियों की पढ़ाई रुक जाती है। वहीं मां-बाप लड़कियों को घर से बाहर जाने देने से भी कतराते है। पूर्व उप प्रमुख जुलहास मंडल ने कहा कि मैंने कई बार जैक से लेकर स्थानीय प्रशासन को हाई स्कूल की स्वीकृति के लिए आवेदन दिया। लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। प्रशासन, विभाग और जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों को हाई स्कूल के लिए सार्थक पहल करने की जरूरत है।
Kya recent mein Kisi bhi padadhikari ya MLA MP ko koi proposal high school ke liye Diya gaya
Rafikul ji nhi diya gaya hai