कृपा सिंधु बच्चन@समाचार चक्र
पाकुड़। पहले पाकुड़ एक कस्बाई नगर था। नगर पंचायत था। नगर में आबादी कम थी। लेकिन आबादी के बनिस्पत हर तरह की गाड़ियां ज्यादा थी। कारण था पाकुड़ का पत्थर उद्योग। बाहर से भी बहुत गाड़ियां आतीं थी, स्वाभाविक रूप से साथ ही आदमियों का आवागमन भी ज्यादा थी। लेकिन जाम की स्थिति नहीं बनती थी। इसका कारण था, बाहर से आने वाले लोग और पाकुड़ के भी लोग अपनी रोजीरोटी के लिए गाड़ी सहित खदान और खनन क्षेत्र का रुख कर जाते थे। बाजार छोटा थ, इसलिए बड़ी तथा त्यौहारी खरीददारी के लिए लोग पश्चिम बंगाल के शहरों का रुख करते थे।अनुमंडल था पाकुड़ तो न्यायायलय भी अनुमंडल स्तरीय था। सभी सरकारी कार्यालय भी उसी स्तर के थे। एक आध छोड़ कोई निजी विद्यालय, अस्पताल आदि नहीं थे। प्रगति की दौर में पाकुड़ अनुमंडल से जिला बना। नये नये कार्यालय बने। सबकुछ में प्रगति हुई। कस्बाई नगर ने एक जिले का रूप और आकार लिया। कालांतर में नगर पंचायत नगर परिषद बन गया। प्रखंडों का भी विकास हुआ। अमड़ापाड़ा में कोल माइंस खुले। आबादी बढ़ी। बाहर से व्यापार और नौकरी के लिए बड़ी आबादी आकर बस गई। नगर ने शहर का रूप लिया तो बाजार भी बढ़ा। जिला परिषद और नगर परिषद ने भी मार्केटिंग कम्पलेक्स बनाए। निजी मॉल बने। लोगों को उचित कीमत और क्वालिटी दोनों यहीं मिलने के कारण खरीददारी भी यहीं करने लगे। भीड़ और वाहनों की संख्या भी बढ़ती गई। कहने का तात्पर्य कि जो एक शहर के लिए जरुरी है सब बना, लेकिन मुख्य सड़क एक ही रह गया। लाजमी है सभी व्यापारिक संस्थान उसी एक सड़क पर ही सिमटी रही। स्वाभाविक रूप से वाहनों की संख्या भी अनवरत बढ़ती गई। कई कारणों से लोगों में इस व्यस्त होती ट्रैफिक व्यवस्था में जागरूकता उतनी नहीं बढ़ी। लेकिन जो सबसे दुखद और आश्चर्य की बात है कि नगर में बने सरकारी और गैर सरकारी मार्केटिंग कम्प्लेक्स में कहीं भी पार्किंग की समुचित व्यवस्था नहीं की गई। ये दिखता है, लेकिन हम ये सिर्फ नहीं कह रहे। जाम और उस पर गलत पार्किंग पर हुई कार्रवाई पर लिखी मेरी रिपोर्ट पर आम जनता पाठक ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए इस पर सवाल उठाए। सवाल लाजमी था, तो मैंने भी नगर परिषद के अमरेंद्र कुमार से लगे हाथ इस सवाल को दुहराने का प्रयास किया। मेरे फोन पर औपचारिक रूप से अच्छी बात शुरू हुई, लेकिन जैसे मैंने जाम शब्द का उच्चारण किया, उन्होंने मीटिंग में रहने की बात कह यह कहते हुए फोन रख दिया कि इस पर बाद में बात करते हैं। लेकिन जो भी हो सवाल तो अनुत्तरित रह गया कि सरकारी सहित निजी मार्केटिंग कम्प्लेक्स में पार्किंग स्थल कहां खो गया!
