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Maqsood Alam
(News Head)

मदर्स डे: बच्चों के भविष्य के लिए छोड़ा घर, दूसरों के घर काम कर परवरिश की, बेटा-बेटी को पढ़ाई

मुखिया बन गरीबों की कर रही सेवा, संघ की प्रखंड अध्यक्ष भी बनी

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Gunjan Saha
(Desk Head)

अबुल काशिम@समाचार चक्र
पाकुड़। मां ममता के मंदिर की वो प्यारी मूरत होती है, जो बच्चों की परवरिश के लिए अपना सबकुछ त्याग सकती है। अपनी जान देकर भी बच्चों का भविष्य चुनती है। आज एक ऐसी मां की सफलता की बात करने जा रहे हैं, जिन्होंने बच्चों के भविष्य की खातिर अपना घर-बार सबकुछ त्याग दिया। अपने बच्चों के भविष्य को संवारने के लिए सत्रह सालों से संघर्ष कर रही है। पति के घर की परिस्थितियों से छुटकारा पाने के लिए ना सिर्फ खुद घर छोड़ आई, बल्कि बच्चों को ममता के आंचल में समेट कर उत्तर प्रदेश से पाकुड़ आ गई। नतीजा यह हुआ कि सालों का संघर्ष रंग लाने लगी और अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा कर लायक बनाया। इतना ही नहीं, पंचायत चुनाव में जबरदस्त जीत हासिल कर मुखिया बनकर गरीबों की सेवा भी करने लगी। यह हिरणपुर प्रखंड के तोड़ाई पंचायत की महिला मुखिया तेरेसा टुडू के जीवन से जुड़ी सच्चाई है। जिससे समाज को प्रेरणा लेने की जरूरत है। पुरुष प्रधान समाज में तेरेसा टुडू जैसी संघर्षशील महिलाएं दूसरों के लिए मिसाल है। मुखिया तेरेसा टुडू बताती है कि साल 1996 में उत्तर प्रदेश के ईंटा जिला में उनकी शादी हुई। दंपति से एक बेटा करण और बेटी प्रिया हुई। विवाह बंधन में बंधने के बाद तीन-चार साल ही सब कुछ ठीक-ठाक रहा। इसके बाद परिस्थितियां बदलने लगी। मानसिक और शारीरिक प्रताड़नाओं से तंग आकर घर छोड़ने का फैसला किया। मुखिया तेरेसा टुडू बताती है कि पति का घर छोड़ना उस वक्त के लिए ही नहीं, बल्कि जीवन भर के लिए एक कठिन पल था। अपना जीवन तो वह किसी भी हालत में पति के साथ काट लेती। लेकिन दोनों बेटा बेटी के भविष्य का क्या होगा, यही सोचकर घर छोड़ने का मन बना लिया। अगर यह कदम नहीं उठाती तो बच्चों की परवरिश तो दूर की बात, भविष्य ही बर्बाद हो जाता। इसलिए अपना सब कुछ त्याग कर बच्चों को ममता के आंचल में समेटे पति के घर से निकल पड़ी और हिरणपुर मायके में आ गई। वह बताती है कि इस दौरान समाज में उन्हें तरह-तरह का ताना भी सुनना पड़ा, लेकिन वह हार नहीं मानी। अपने बच्चों की परवरिश के लिए दूसरों के यहां काम करने लगी। इससे जो भी आमदनी होती थी, उसी से बच्चों को पालने के साथ-साथ पढ़ाने का भी काम कर रही थी। हालांकि जब यह आमदनी कम पड़ने लगी, बच्चों को पालने पढ़ाने में दिक्कतें होने लगी, तब साल 2010 में जेएसएलपीएस से जुड़ गई। यहां 2015 तक कृषि विभाग में कृषि मित्र के रूप में काम किया। उनके काम से विभाग के अधिकारी इतने प्रसन्न हुए कि तेरेसा टुडू में पाकुड़ की उन्नत खेती के सपने देखने लगे। कृषि विभाग ने साल 2018 में टीम के साथ उन्नत खेती के ट्रेनिंग के लिए विदेश यानी इजराइल भेज दिया। इजरायल में तीन दिन का ट्रेनिंग लेकर वतन लौट आई। दिलचस्प बात तो यह है कि बच्चों की परवरिश के लिए जहां दूसरों के घर में काम किया, जेएसएलपीएस से जुड़ी, वहीं इसी दौरान पंचायत चुनाव में भी किस्मत आजमाती रही। पहली बार साल 2010 में मुखिया के पद पर चुनाव लड़ी। इसके बाद साल 2015 में भी मुखिया पद पर चुनाव मैदान में उतरी। हालांकि दोनों ही चुनाव में उन्हें सफलता नहीं मिली, लेकिन अपने आप से हार नहीं मानी। तीसरी बार साल 2022 में फिर से मुखिया पद पर किस्मत अजमाया और इस बार उन्हें जबरदस्त जीत हासिल हुई।मुखिया तेरेसा टुडू बताती है कि पति का घर छोड़ने के बाद कभी-कभी अंदर से टूट भी जाती थी, लेकिन दोनों बेटा बेटी का चेहरा उन्हें हिम्मत दे जाती थी। यही वजह है कि आज बेटा करण 25 साल का ग्रेजुएट युवा बन गया है। वहीं 21 साल की बेटी प्रिया मां के नक्शे कदम पर चलना सीख रही है। प्रिया केकेएम कॉलेज से ग्रेजुएशन कर रही है। मुखिया तेरेसा टुडू का मानना है कि इंसान अगर संघर्ष करें तो हर ऊंचाई को छू सकता है। अपने बच्चों की परवरिश के साथ-साथ समाज सेवा की भी इच्छा रही। इसी वजह से पंचायत चुनाव में किस्मत आजमाई।आज मुखिया बनकर गरीबों की सेवा भी कर रही है। तेरेसा टुडू बताती है कि विशेष कर आदिवासी समाज के लोग काफी भोले भाले होते हैं। उन्हें छोटी-छोटी जरूरतों के लिए भी तरसना पड़ता है।इसलिए उन्हें सरकार की योजनाओं से जोड़ने के लिए मुखिया बनने का ख्वाब पूरा किया।

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