कृपा सिंधु बच्चन@समाचार चक्र
पाकुड़। काले पत्थरों के लिए सदियों से प्रसिद्ध पाकुड़ में व्यपार और लक्ष्मी तथा लक्ष्मीपुत्रों की कमी नहीं थी। लेकिन पाकुड़ शिक्षा के क्षेत्र में काफी पिछड़ा हुआ था। हांलांकि यहां ब्रिटिश काल के ऐतिहासिक विद्यालय रहे हैं। काली किंकर दत्ता जैसे इतिहास के मूर्धन्य विद्वान की जमी रहे पाकुड़ में शिक्षा का माहौल काफी कमजोर रहा। शिक्षा के दृष्टिकोण से झारखंड में 22वें नंबर पर रहने वाला पाकुड़ अब इन दिनों दूसरे नंबर पर आ गया है। पहले यहां पत्थर उद्योग से पत्थर, मजदूर और उद्योगपति पैदा होते थे। समय बदला, प्रतियोगिता के इस दौर में उद्योग के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों में भी प्रतियोगिता ने जन्म लिया। नये नये निजी विद्यालय का दौर आया। सरकारी विद्यालयों ने भी अपने में काफी बदलाव किया। नये जमाने के शिक्षकों ने विद्यालयों में शिक्षा के माहौल बनाए। सरकारी पदाधिकारियों ने भी शिक्षा के माहौल के लगाम कसे। पिछले दिनों तो कई दौरों में ऐसे पदाधिकारी आए, जिन्होंने अपनी सरकारी जिम्मेदारी से समय निकाल कर, छात्रों को मुफ्त कोचिंग दी। सबसे बड़ी बात यह रही कि मजदूर पैदा करने वाले अभिवावकों ने अपने बाद की पीढ़ी को शिक्षित बनाने का मन बनाया और इन सब कारणों से गुदड़ी में लिपटा बचपन स्कूल ड्रेस में नजर आने लगा। डिजिटल दुनियां में अभिवावक और बच्चे दुनियां में शिक्षा के महत्व को समझने लगे और इस जेनरेशन ने शिक्षित होने का बीड़ा उठाया। अभिवावकों का साथ मिला, सरकारी नीतियों को अधिकारियों ने जमीनी हकीकत दी तथा 22 वें नंबर से पाकुड़ दूसरे नंबर तक आ गया। पिछले दिनों निकले दसवीं और बारहवीं की परीक्षा परिणाम में हर क्षेत्र में पाकुड़ के बच्चों ने काफी अच्छा किया और राज्य स्तर पर दूसरा से लेकर दसवें स्थान तक पर अपनी पकड़ बनाई। सबसे गौर करने वाली बात यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों जहां शिक्षा की अलख कमजोर पड़ जाया करती रही, वहां से भी न सिर्फ बच्चों ने अच्छा परीक्षा परिणाम दिया, बल्कि पिछले कुछ दिनों में तो डॉक्टर, इंजीनियर के साथ-साथ पाकुड़ के ग्रामीण क्षेत्रों ने खेल सहित अन्य क्षेत्रों में भी कोहिनूर दिए हैं।
इसके लिए बच्चों के साथ-साथ शिक्षा जगत से जुड़े लोग, संवेदनशील पदाधिकारियों की कार्यप्रणाली, आधुनिक शिक्षकों की मेहनत और गरीब अभिवावकों की अपनी अगली पीढ़ी को शिक्षित करने के संकल्प ने सामुहिक काम किया।