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ललन झा@समाचार चक्र
अमड़ापाड़ा। अतिवृष्टि से इस वर्ष क्षेत्र में किसानों को कहीं लाभ तो कहीं नुकसान की संभावना है। पिछले दो तीन महीनों से हुई लगातार वर्षा से यदि धान के कृषकों को फायदा है तो पहाड़ियों पर निवास करने वाली पहाड़िया जनजाति के किसानों को नुकसान है। नुकसान इस अर्थ में कि इस दफा पहाड़िया किसानों को अरहर और मक्का नहीं होगा। जबकि क्षेत्र का मुख्य फसल धान और मक्का ही है। क्षेत्र भ्रमण और ग्रामीणों से संपर्क के बाद यह जानकारी मिली कि प्रखंड के पहाड़िया बहुल गांवों में लगातार वर्षापात के कारण इन फसलों की खेती व्यापक रूप से प्रभावित हुई। जल जमाव से बीज अथवा पौधे गल गए। बरबट्टी जो पहाडियाओं का मुख्य नकदी फसल माना जाता है। रोपण की तैयारी चल रही है। पहाड़ियों पर जहां ये बोए या रोपे जाते हैं, वहां के जंगल-झाड़ियों की सफाई की जा रही है।
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पहाड़िया समुदाय के बीच स्थायी रोजगार या आमदनी का कोई ठोस स्रोत है ही नहीं
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प्रखंड में इस समुदाय की अच्छी-खासी तादाद है। ये बौद्धिक, शैक्षिक, सामाजिक और राजनीतिक रूप से अब भी बेहद कमजोर हैं।स्वतंत्रता के करीब आठ दशक बाद भी इस समुदाय के बीच जरूरी मौलिक सुविधाओं की भी नितांत कमी है। सरकार और विभाग के लाख प्रयास के बावजूद इनकी दशा नहीं सुधरी है। ऐसे में , पहाडों, जंगलों में वास करने वाली इस जाति के आय का एक अतिरिक्त जरिया परंपरागत कमोबेस खेती ही है। किन्तु, इस वर्ष मक्का आदि फसलों के प्रभावित होने से इन्हें अपेक्षाकृत अधिक बुनियादी परेशानियों से दो-चार होना पड़ सकता है। वैसे भी न इनके लिए किसी विशेष स्थायी रोजगार की व्यवस्था है और न ही आमदनी का कोई जरिया।
क्या कहते हैं इस समुदाय के बुद्धिजीवी सुनील पहाड़िया
उपरोक्त तथ्यों पर सहमति जताते हुए सुनील कहते हैं कि सिस्टम को इस समुदाय के प्रति विशेष रूप से जिम्मेवार होना चाहिए। इनका इस्तेमाल सिर्फ राजनीतिक स्वार्थ के लिए न हो। इस साल अधिक वर्षा से इनका फसल भी प्रभावित हुआ है। ये दोहण और शोषण की जाल से निकलें, सरकार की यह ईमानदार कोशिश होनी चाहिए।