समाचार चक्र संवाददाता
पाकुड़। केकेएम कॉलेज में कार्यरत शिक्षकेत्तर कर्मचारी 26 नवंबर 2024 से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर है। कॉलेज कर्मी कॉलेज के पुराने भवन के मेन गेट पर तालाबंदी कर धरने पर बैठे हैं। कर्मचारियों का एक ही मांग है कि उन्हें सातवां वेतनमान का लाभ मिले। इसी मांग को लेकर लगातार धरना में बैठे हुए हैं। एक तरफ जहां कर्मचारियों की मांग सुनी नहीं जा रही है, वहीं दूसरी तरफ हड़ताल का सीधा असर कॉलेज में पढ़ाई करने वाले हजारों छात्र-छात्राओं पर पड़ रहा है। कॉलेज कर्मियों का कहना है कि सिदो-कान्हू मुर्मू यूनिवर्सिटी के कुलपति से लेकर जनप्रतिनिधि और सरकार के पास अपनी मांग को रख चुके हैं। लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रहा है। इसलिए कर्मचारी धरना पर बैठे हैं और कॉलेज के गेट का ताला नहीं खुल रहा है। इसका खामियाजा छात्र-छात्राओं को भुगतना पड़ रहा है। कालेज कर्मियों से मिली जानकारी के मुताबिक कर्मचारियों के हड़ताल से ट्रांसफर सर्टिफिकेट या स्थानांतरण प्रमाण पत्र (टीसी) और कॉलेज लीविंग सर्टिफिकेट (सीएलसी) निर्गत नहीं हो पा रहा है। जिससे जरुरतमंद छात्रों को परेशानियों से गुजरना पड़ रहा है। इसके अलावा सेमेस्टर वन से लेकर सेमेस्टर सिक्स तक के छात्रों को मार्कशीट भी निर्गत नहीं हो पा रहा है। इसके लिए भी छात्रों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। मूल प्रमाण पत्र, जो फाइनल सेमेस्टर के छात्र हैं, उन्हें नहीं मिल पा रहा है। इधर हड़ताल पर बैठे कर्मचारियों से जानकारी मिली कि सामने सेमेस्टर सिक्स के छात्रों का प्रैक्टिकल यानी प्रायोगिक परीक्षा है। कर्मचारियों के हड़ताल की वजह से केकेएम कॉलेज में पढ़ने वाले सेमेस्टर सिक्स के छात्रों के लिए साहिबगंज जिले के बोरिओ शिबू सोरेन जनजातीय कॉलेज में प्रैक्टिकल परीक्षा का केंद्र बना दिया गया है। इसका मतलब यह हुआ कि छात्रों को प्रैक्टिकल परीक्षा देने जिले से बाहर जाना पड़ेगा। इससे कहीं ना कहीं विशेष कर छात्राओं को परेशानी तो जरूर होगी। इधर 9 जनवरी को ही संपन्न हुई इग्नू की परीक्षा में शामिल होने वाले छात्रों को भी परेशानी उठाना पड़ता, अगर हड़ताल पर बैठे कर्मचारी परीक्षा के आयोजन पर ऐतराज जताते। लेकिन कर्मचारियों का कहना है कि छात्रों की परेशानी को देखते हुए इग्नू परीक्षा के आयोजन को हड़ताल से बाहर रखा गया। इन सब के बीच देखना यह है कि कर्मचारियों को कब तक हड़ताल पर बैठा कर रखा जाएगा। कर्मचारी भी आस लगाए बैठे हैं कि कोई तो आकर उनकी बातों को सुने और पहल का आश्वासन दें।