अबुल काशिम@abul-kashim
पाकुड़। सदर प्रखंड अंतर्गत कालिदासपुर पंचायत के हरिपुर गांव में टाली खपरैल के घर में रह रहे एक बेहद ही गरीब परिवार ग्रामीण राजनीति के सामने बेबस नजर आ रहे हैं। अबुवा आवास की स्वीकृति मिलने के बाद भी घर का निर्माण काम आगे नहीं बढ़ा पा रहे हैं। आवास की स्वीकृति मिलने के बाद घर बनाने के लिए पूर्व में जिस झोपड़ी में रह रहे थे, उसे भी तोड़ दिया है। तथाकथित शिकायतकर्ता और ग्रामीण राजनीति की गलत भावना का ही परिणाम है कि छोटे-छोटे बच्चों के साथ पूरा परिवार को हर घड़ी चिंता खाए जा रही है। हालांकि बैंक खाते में पहला किस्त हस्तांतरित होने के बाद घर निर्माण का काम शुरू भी किया गया। लेकिन खाते से राशि की निकासी पर रोक लगने के बाद आगे का निर्माण कार्य भी रोकना पड़ा। इधर पंचायत सचिव नौकरी बचाने का हवाला देते हुए लाभुक को राशि निकासी के लिए मना कर रखा है। एक बेबस परिवार छोटे-छोटे बच्चों के साथ खुले आसमान में दिन बिताने को मजबूर हैं और स्थिति को नजर अंदाज कर तथाकथित शिकायतकर्ता और कर्मचारी अपनी सोच में डूबे हैं। दरअसल हरिपुर में खपरैल में रहने वाली वाहिदा बीवी (पति- अजफरुल शेख) के नाम से अबुआ आवास स्वीकृत हुआ है। आवास की स्वीकृति के बाद पहला किस्त के रूप में लाभुक के बैंक खाते में तीस हजार रुपए हस्तांतरित हुआ है। बैंक खाते में राशि हस्तांतरित होने के बाद लाभुक ने पुराने झोपड़ी को तोड़कर घर बनाना शुरू कर दिया। घर की कुर्सी तक का निर्माण हुआ ही था कि तथाकथित शिकायतकर्ता को मानों सांप सूंघ गया। पंचायत सचिव एवं अन्य जिम्मेवार लोगों से मौखिक शिकायत कर मामले को आगे बढ़ाने की बात भी कही गई। इसके पीछे भी ग्रामीण राजनीति या निजी स्वार्थ ही बताया जा रहा है। हालांकि शिकायत के पीछे एक कारण यह भी बताया जा रहा है कि महिला लाभुक के पति अजफरुल शेख के नाम से छह सात साल पहले प्रधानमंत्री आवास की स्वीकृति दी गई थी। उस समय वह पास के ही नरोत्तमपुर में रहता था। हालांकि अजफरुल शेख का परिवार और ग्रामीणों से जानकारी मिली कि आपसी बंटवारे के बाद वह आवास शारीरिक रूप से कमजोर दिव्यांगता का शिकार भाई और उम्र के आखरी पड़ाव में दिन काट रही बुढ़ी बेबस मां के हिस्से में चला गया है। अब वह अपने परिवार के साथ पिछले कई सालों से हरिपुर में रह रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि पुराने घर से बेघर हुए एक बेबस परिवार को सरकारी आवास मिलना क्या कोई गुनाह है। बुद्धिजीवियों का मानना है कि ऐसे परिवार को समाज का सहयोग चाहिए, ना कि शिकायत कर किसी को घर से वंचित रखना चाहिए। यह समझने वाली बात है और समाज को ऐसे परिवार का साथ भी देना चाहिए। इधर तथाकथित शिकायतकर्ता के सामने पंचायत सचिव ने भी मानों हार ही मान लिया है। उन्होंने लाभुक को बैंक खाते से राशि निकालने के लिए मना कर दिया है। जिससे लाभुक परिवार की परेशानी बढ़ गई है। उल्लेखनीय है कि नरोत्तमपुर पंचायत निजी स्वार्थ और ग्रामीण राजनीति को लेकर बदनाम रहा है।