समाचार चक्र संवाददाता
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पाकुड़। देश की राजधानी दिल्ली जैसे शहर से पढ़ाई के बीच गांव लौट आना और महज 25 साल की उम्र में राजनीति में पदार्पण के साथ ही बेजोड़ सफलता, एक महिला के लिए राह बिल्कुल भी आसान नहीं था। खासकर तब, जब राजनीति से कोसों दूर बचपन ही शहर में गुजरा हो और अचानक गांव की राजनीति में आना पड़ जाए, जिसका अनुभव भी शुन्य हो। इस परिस्थिति में भी मुखिया पद के चुनाव में जबरदस्त जीत, डॉ मिसफीका हसन जैसी महिला को समाज के लिए मिसाल बना देती है। डॉ मिसफीका हसन आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है। जिस तरह दस साल के छोटे से सफर में डॉ मिसफीका ने राजनीति में खुद को स्थापित किया है, वह दूसरों को प्रेरित करने वाला है। पार्टी ने जो भरोसा उन पर जताया, उस पर खरा उतरते हुए लगातार आगे बढ़ती गई। पार्टी ने उन पर विश्वास जताया और उन्होंने भी पार्टी की विचारधारा को जन-जन तक पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। एक अल्पसंख्यक महिला के रूप में पाकुड़ जैसे पिछड़े और छोटे शहर से दिल्ली तक का सफर तय किया। पार्टी ने शुरुआत में एक कार्यकर्ता के रूप में जगह दी, इसके बाद प्रदेश प्रवक्ता का पद मिला और फिर राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक मंत्री बना दिए गए। अल्पसंख्यकों के लिए कुछ करने की तमन्ना लिए डॉ मिसफीका हसन पार्टी में इतनी सक्रिय हो गई कि, उन पर दिल्ली नेतृत्व भी नजर रखने लगी। पार्टी में अल्पसंख्यक और शिक्षित महिला कार्यकर्ता की जरूरत को पूरा करने वाली डॉ मिसफीका हसन ने राजनीति में रहते हुए अपनी पढ़ाई को भी बरकरार रखा और उन्होंने एलएलबी की डिग्री भी हासिल कर ली। इससे राजनीति के क्षेत्र में रहकर कानून के दायरे में रहते हुए जनहित में काम करने की ललक भी साफ झलक रही है। डॉ मिसफीका हसन का भी मानना है कि इस रास्ते पर चलकर वे अल्पसंख्यक समाज को ज्यादा लाभान्वित कर सकेंगी। यह उनकी दिली ख्वाहिश और लक्ष्य भी है। डॉ मिसफीका हसन की सफलता की बात करें तो मुखिया का चुनाव जीतने के बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और लगातार आगे बढ़ती गई। पाकुड़ सदर प्रखंड के ईलामी पंचायत में साल 2015 में पंचायत चुनाव में मुखिया पद से निर्वाचित हुई। इसके तुरंत बाद भारतीय जनता पार्टी की ओर से आमंत्रण मिला और पार्टी में कार्यकर्ता के रूप में ज्वाइन की। इसके बाद पार्टी में उन्हें इस कदर सम्मान मिला कि देखते ही देखते कद बढ़ने लगा। तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास के करीबी मानी जाने लगी। इसके बाद साल 2018 में प्रदेश प्रवक्ता नियुक्त किया गया और फिर 31 मई 2021 को अल्पसंख्यक मोर्चा की राष्ट्रीय मंत्री नियुक्त की गई। डॉ मिसफीका हसन पूरे झारखंड में एक चर्चित महिला नेत्री के रूप में चर्चा में आ गई। पूरे झारखंड में उनकी चर्चा होने लगी। पाकुड़ जिला में तो उनकी इतनी चर्चा थी और अभी भी है कि शायद ही पाकुड़ की राजनीति में किसी दूसरी महिला की ऐसी चर्चा हुई होगी। पार्टी में किस्मत का सितारा इस कदर चमकने लगा कि लोग उनके काम के दीवाने होने लगे। अल्पसंख्यक महिलाओं के बीच उनकी भागीदारी बढ़ने लगी। जहां भी जाती, महिलाएं उन्हें घेर लेती, अपनी समस्याओं को बताती। यह सिलसिला लगातार चलता गया और यही वजह है कि पार्टी की नजर में उनकी छवि कर्मठ नेत्री के रूप में दिखने लगी। डॉ मिसफीका हसन कहती है कि अल्पसंख्यक समाज का विकास ही मेरा लक्ष्य है। मैंने हमेशा अल्पसंख्यक समाज के लिए कुछ करने का सोचा है। मैं जब मुखिया बनी, तब भी अल्पसंख्यक और गांव का विकास ही मेरी पहली प्राथमिकता होती थी। इसके लिए मैंने काम भी किया और ग्रामीणों का मुझे भरपूर सहयोग मिला। मैं इसके लिए ग्रामीणों का शुक्रिया अदा करती हूं। उनके ही दुआओं से मैं आज राजनीति में यहां तक पहुंची हूं। मैंने संत जेवियर्स रांची से बायोटेक्नोलॉजी में स्नातक, जामिया मिलिया इस्लामिया नई दिल्ली से बायोटेक्नोलॉजी में स्नातकोत्तर,
आज्टेका विश्वविद्यालय, मैक्सिको से कैंसर अनुसंधान में कैंसर को लक्षित करने के लिए रासायनिक यौगिकों की पहचान और लक्षण वर्णन विषय में पीएचडी संथाल परगना लॉ कॉलेज से एलएलबी की पढ़ाई पूरी की है। मैं अपने कार्यक्षेत्र में रहकर अल्पसंख्यक समाज के लिए काम करती रहूंगी।
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