पाकुड़ । पवित्र रमजान शरीफ के तीसरे जुम्मे की नमाज अदा करने से पहले इस्लाम धर्मावलंबियों को संबोधित करते हुए मौलाना अंजर काशमी ने कहा कि रमजान शरीफ बंदे का अपने रब्ब से इजहार-ए-इश्क का महीना है। बंदा अपने रब्ब को राजी करने के लिए उसके हुक्म के मुताबिक अपना वक्त गुजारता है। कहा कि अल्लाह ताआला हमारी नीयतों को जानता है। उसे पता है कि कौन दिखावे का भूखा प्यासा है और कौन सच्चा रोजेदार है।
मौलाना ने कहा कि अल्लाह के प्यारे नबी हजरत मुहम्मद सल्ललाहु अलैहीवसल्लम रमजान शरीफ के पवित्र महीने में तेज चलने वाली हवा से भी ज्यादा फइयाका (दानी) थे। रमजान का उद्देश्य साधन सम्पन्न लोगों को भी भूख-प्यास का एहसास कराकर पूरी कौम को अल्लाह के करीब लाकर नेक राह पर डालना है। साथ ही यह महीना इंसान को अपने अंदर झांकने और खुद का मूल्यांकन कर सुधार करने का मौका भी देता है।
उन्होनें कहा कि पड़ौसी चाहे किसी भी धर्म से सबंध रखता हो, अगर वह भूखा है तो मुसलमान पर उसकी मदद करना फर्ज है। उन्होनें कहा कि अल्लाह ताआला अपने उन बंदों से बहुत प्यार करता है जो कि उसके बंदों की मदद करते है।उन्होंने कहा कि इबादत से जन्नत मिलती है लेकिन खिदमत से खुदा मिलता है। इसलिए अगर हम चाहते है कि खुदा के दोस्त बन जाए तो बिना भेद-भाव के कमजोर इंसानों की मदद करें। मौलाना ने कहा कि रमजान का ये पवित्र महीना हमें इसी तरह प्यार, मोहब्बत और आपसी भाईचारे को बढ़ाने की प्रेरणा देता है।