अबुल काशिम@समाचार चक्र
पाकुड़। जिले के प्राइमरी और मिडिल स्कूलों में पिछले लगभग अठारह सालों में सरकारी शिक्षकों की संख्या घटकर आधे से भी कम हो गए। जबकि एक अनुमान के मुताबिक छात्रों की संख्या दोगुनी हो गई। एक तरफ विभिन्न कारणों से सरकारी शिक्षकों के कम होते जाना और दूसरी तरफ छात्रों की संख्या में लगातार वृद्धि से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की उम्मीद ही बेकार है। इसका दूसरा पहलू विषय वार शिक्षक का प्रावधान भी दूर-दूर तक नजर नहीं आती। इन सबके बीच कह सकते हैं कि पारा शिक्षक (सहायक अध्यापक) ही है, जो मोर्चा संभाले हुए हैं। अगर पारा शिक्षकों की बहाली नहीं होती, तो सरकारी स्कूलों की हालत क्या होती, इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। शिक्षा विभाग से जुड़े एक शख्सियत की माने तो साल 2005-06 में प्राइमरी और मिडिल स्कूलों की संख्या 663 थी। इनमें राजकीय कन्या मध्य विद्यालय पाकुड़ एवं बुनियादी मध्य विद्यालय अमड़ापाड़ा दो विशेष विद्यालय भी शामिल हैं। इन स्कूलों में 1918 सरकारी शिक्षक के पद स्वीकृत थी। इनमें 160 उर्दू शिक्षक भी शामिल थे। यहां बताना जरूरी होगा कि 1918 शिक्षकों में से 17 शिक्षक राजकीय कन्या मध्य विद्यालय पाकुड़ एवं बुनियादी मध्य विद्यालय अमड़ापाड़ा के भी शामिल हैं। इस तरह 663 स्कूलों में दो विशेष विद्यालय और उर्दू शिक्षक को मिलाकर कुल 1918 शिक्षकों का पद स्वीकृत थी। उस वक्त छात्रों की संख्या 80 हजार से 90 हजार के आसपास हुआ करती थी। अगर वर्तमान समय की बात करें तो छात्रों की संख्या बढ़कर तकरीबन डेढ़ लाख पहुंच गया है। वहीं शिक्षा विभाग के शख्सियत का कहना है कि वर्तमान समय में सरकारी शिक्षक महज 650 के आसपास ही बच गए है। इनमें सेवानिवृत्ति या फिर अन्य पहलू जुड़े हो सकते हैं। इस तरह जिले में प्राथमिक शिक्षा की हालत को सहज ही समझा जा सकता है। हालांकि पारा शिक्षक यानी सहायक अध्यापक शिक्षा व्यवस्था को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते नजर आ रहे है। लगभग 1650 पारा शिक्षक बहाली के बाद से ही कम से कम पठन-पाठन व्यवस्था में मोर्चा संभाले हुए हैं। यह अनुमानित आंकड़ा शिक्षक बहाली की दिशा में सरकार की मंशा को साफ दर्शाता है। झारखंड राज्य बनने के बाद से ही प्राथमिक शिक्षा को मजबूती देने के लिए किसी भी सरकार ने ठोस कदम नहीं उठाया। अन्यथा जिले में सरकारी शिक्षकों की संख्या इस तरह नहीं घटते। अभिभावकों का मांग है कि सरकार शिक्षक बहाली में सार्थक कदम उठाए। अन्यथा बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा।