अमड़ापाड़ा। लोगों में ईश्वर के प्रति प्रेम और समर्पण बढ़े। सनातनी परंपरा की समझ विकसित हो। हमें क्या करना और क्या नहीं करना है। कर्म करते हुए भगवान के शरणागत हो जाएं। कर्म और ज्ञान दोनों का सामंजन ही गीता का संदेश है। ये बातें एक साक्षात्कार के दौरान वृंदावन के युवा विद्वान आचार्य डॉ. गोविंद मुरारी पराशर ने कही।
वो बासमती के राधा कृष्ण मंदिर के निकट स्थित मां विपत्तारिणी देवी की प्राण प्रतिष्ठा सह श्रीमद भागवत गीता सप्तपरायण महायज्ञ में आमंत्रित मुख्य पंडित व कथावाचक हैं। उन्होंने कहा : शास्त्र से विज्ञान है। हमारी वैदिक संस्कृति व ज्ञान विश्व में अनुकरणीय है। इस्कॉन के जरिए सनातन परंपरा दुनिया के दो सौ देशों में प्रसारित है। सनातन में वेद पुराण, ज्योतिष ज्ञान, उपनिषद व अन्यान्य सभी चीजें समाहित हैं। दुनिया में आम अथवा खास कोई नहीं सभी जीव हैं। जीव दो हैं ज्ञानी और अज्ञानी। दया, धर्म, करूणा, त्याग, सहयोग, परोपकार, सहिष्णुता, कर्म से अज्ञान में भटक रहे मानवजाति को ईश्वर के प्रति आस्थावान बनाना है।
उन्होंने कहा कि अम्बा, जगदंबा, भगवती, सरस्वती, विपत्तारिणी सभी आदि शक्ति के रूप हैं। मां के करोड़ों स्वरूप हैं। जिसने जिस रूप को पूजा, मनोवांछित फल पाया वो उस स्वरूप के भक्त हो गए। नारी शक्ति का सम्मान, उन्हें सृष्टि के जनक के रूप में पूजना ही धर्म है। हमें महिलाओं के प्रति श्रद्धावनत होना चाहिए। समाज में उनका स्थान श्रेष्ठ है। वो पूजनीय और वंदनीय हैं।
डॉ. पराशर ने कहा कि आवश्यक संसाधनों की जगह अतिशय भौतिकवाद अथवा भोगवाद की इच्छा ही पतन और कष्ट के कारक हैं। हमें अपने घर गृहस्थी में रहकर भी परमेश्वर से प्रेम करना चाहिए। अपने परिवार, समाज, राष्ट्र और संपूर्ण मानवजाति के कल्याण के लिए आध्यात्मिक और संयमित होना चाहिए। वसुधैव कुटुम्बकम अर्थात सारी धरती हमारा परिवार है कि मनोवृत्ति का विकास होना चाहिए। भारत की गरिमामयी संस्कृति और सभ्यता का अनुगामी बनना चाहिए। सनातन पर चोट या राजनीति हम बर्दाश्त नहीं करेंगे। गीता जीवन का सार है। यह जीवन कार्य प्रबंधन है। हमें गीतोपदेश को अपने कर्मों में ढाल जीवन को सफल बना लेना चाहिए।