ललन झा@समाचार चक्र
अमड़ापाड़ा। शारदीय नवरात्र की समाप्ति पर मां दुर्गा के नवम अथवा अंतिम रूप मां सिद्धिदात्री की पूजा सोमवार को संपन्न हुई। प्रयागराज के पंडित सुनील मिश्र व नागेश मिश्र ने समुचित वैदिक पद्धति के साथ पूजन संपन्न कराया। जबकि पूजा के अन्य तमाम विधि- विधानों में स्थानीय पुरोहित संदीप ओझा व शंभूनाथ झा सहयोगी रहे। पूजन के उपरांत नियत समय पर कूष्माण्ड बलि हुई। पुष्पांजलि, हवन , आरती आदि के बाद महा प्रसाद का वितरण हुआ। वहीं बासमती स्थित दुर्गा मंदिर में भी दुर्गा के नवमी पूजन के उपरांत बकरा बलि हुई। स्थानीय वैष्णवी दुर्गा मंदिर में पूजा के सफल , शांत व अनुशासन पूर्ण आयोजन के निमित्त सार्वजनिक दुर्गा पूजा समिति के सदस्यगण तत्पर रहे। नवमी पर उमड़े श्रद्धालू भक्तों की सुविधाओं का ध्यान रखा। अध्यक्ष बबलू भगत के निर्दिष्ट अनुदेशों का अनुपालन करते रहे।पूजा के सौहार्दपूर्ण आयोजन में प्रशासनिक सहयोग भी प्रशंसनीय रहा।
मां सिद्धिदात्री ही अर्धनारीश्वर हैं
मां सिद्धिदात्री का रूप परम् दिव्य है। इनका वाहन सिंह है। ये देवी कमलासना हैं। इनकी चार भुजाएं हैं। दाहिनी ओर के नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाले हाथ में गदा, बाईं ओर के नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल का पुष्प है। मां सिद्धिदात्री को देवी सरस्वती का भी स्वरूप माना गया है। बैगनी और लाल रंग मां को अतिप्रिय होता है। इनकी अनुकंपा से ही शिवजी का आधा शरीर देवी का हुआ और इन्हें अर्धनारीश्वर कहा गया।धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब दैत्य महिषासुर के अत्याचारों से सभी देवता परेशान हो गए। तब, देवगण भगवान शिव और विष्णु के पास पहुंचे। वहां मौजूद सभी देवताओं से एक तेज उत्पन्न हुआ और उसी तेज से एक दिव्य शक्ति का निर्माण हुआ जो सिद्धिदात्री कहलाईं। मां सिद्धिदात्री भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। इन्हें यश , बल और ऐश्वर्य प्रदान करने वाली देवी माना गया है।