समाचार चक्र संवाददाता
पाकुड़। आजसू कार्यकर्ताओं ने रविवार को हूल दिवस पर सिद्धो-कान्हू मुर्मू को श्रद्धांजलि दी। जिलाध्यक्ष आलमगीर आलम के नेतृत्व में कार्यकर्ता शहर स्थित पार्क में एकत्रित हुए। पार्क में स्थित सिद्धो-कान्हू मुर्मू की प्रतिमा पर कार्यकर्ताओं ने बारी-बारी से माल्यार्पण किया। इस दौरान कार्यकर्ताओं ने सिद्धो-कान्हू मुर्मू अमर रहे का नारा बुलंद किया। जिलाध्यक्ष आलमगीर आलम ने सिद्धो-कान्हू मुर्मू के जीवनी पर प्रकाश डाला और संताल हूल पर जानकारियां साझा की। जिलाध्यक्ष ने कहा कि सिद्धो-कान्हू मुर्मू ने 1855-56 में ब्रिटिश शासन, साहुकारों, व्यापारियों और जमींदारों के खिलाफ एक विद्रोह की शुरुआत की। इसी को संताल विद्रोह या हूल आंदोलन के नाम से जाना जाता है। उन्होंने कहा कि करो या मरो अंग्रेजों हमारी माटी छोड़ो संताल विद्रोह का नारा था। जिलाध्यक्ष आलमगीर आलम ने कहा कि सिद्धो-कान्हू मुर्मू ने अपनी दैवीय शक्ति का हवाला देते हुए सभी मांझियों को साल की टहनी भेज कर संताल हूल में शामिल होने का आमंत्रण भेजा था। आज ही के दिन 30 जून 1855 को भोगनाडीह में संताल आदिवासियों की एक सभा हुई।जिसमें 30,000 संताल आदिवासी एकत्रित हुए। जिलाध्यक्ष ने कहा कि सिद्धो-कान्हू मुर्मू ने पाकुड़ के धनुषपूजा में पहले पूजा अर्चना कर अंग्रेजों से लोहा लिया था। उनके अदम्य साहस से अंग्रेज भी घबरा गए थे। अंग्रेज हुकूमत को हिला कर रख दिया था। मौके पर जिला प्रवक्ता शेकसादी रहमतुल्ला, जिला मीडिया प्रभारी अहमदुल्ला, पंचायत अध्यक्ष रिजाउल करीम, सफीकूल शेख, बारीउल शेख, समसुद्दीन शेख, अब्दुल्ला, मोताहार, बोसीर, माइमूर, मोईदूर सहित दर्जनों आजसू कार्यकर्ता मौजूद थे।