अबुल काशिम@समाचार चक्र
पाकुड़। पश्चिम बंगाल का पासकुड़ा पूर्व मेदिनीपुर फूलों के शहर के रूप में देश-विदेशों में चर्चित हैं। पूर्व मेदिनीपुर का फूल देश भर में ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व को अपनी खुशबू से महका रही है। फूलों के इसी शहर में पली-बढ़ी श्रावणी साहू शादी के बंधन में बंधकर पाकुड़ जिले के महेशपुर के रहने वाले डॉ पार्थ कुमार पाल के आंगन को महका रही है। पहली ही मुलाकात में एक-दूजे को दिल दे बैठे श्रावणी और डॉ पाल की पवित्र प्रेम कहानी किसी फिल्मी काल्पनिक कहानी से कम नहीं है। फिल्मों में तो प्रेम कहानी सही मायने में काल्पनिक ही होती है, पर श्रावणी और डॉ पार्थ की प्रेम कहानी में कल्पनाओं की कोई जगह नहीं है। इन दोनों की प्रेम कहानी विशेष कर आज के युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा है, जो प्यार को बस कुछ पल के लिए मनोरंजन ही सोचते और समझते हैं। डॉ पार्थ और श्रावणी ने जिस पवित्रता के साथ प्यार के रिश्ते को निभाया और अंजाम तक पहुंचाया, वह वाकई में दूसरों के लिए मिसाल है। अस्पताल में मरीज और नर्स के रूप में दोनों की पहली मुलाकात के बाद शुरू हुई प्रेम कहानी बहुत ही दिलचस्प है। जिसे आज भी दोनों मिलकर निभाते आ रहे हैं। एक दूसरे को आज भी उतना ही प्यार करते हैं, जितना कि पहली मुलाकात के बाद हुआ था। बता दें कि डॉ पार्थ कुमार पाल डेंटिस्ट (बीडीएस) है और पाकुड़ शहर के गुरुद्वारा रोड पर क्लीनिक चलाते हैं। वहीं प्रेमिका से जीवनसाथी बनी श्रावणी साहू नर्स है और पश्चिम बंगाल के रामपुरहाट मेडिकल कॉलेज में जॉब करती है। डॉ पार्थ बताते हैं कि टाटानगर में एमजीएम मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई के दौरान तबीयत खराब होने पर इलाज कराने अस्पताल गए। इसी दौरान कोलकाता के कोठारी अस्पताल में नर्सिंग स्टूडेंट के रूप में काम कर रही श्रावणी साहू से 19 मार्च 2015 को पहली बार मुलाकात हुई। उस वक्त इंडिया का क्रिकेट मैच चल रहा था। मैं अपने मोबाइल पर क्रिकेट मैच देख रहा था। मेरी ट्रीटमेंट के दौरान श्रावणी मेरे पास आती और इंडिया टीम का स्कोर पूछती। श्रावणी के लिए क्रिकेट बहुत ही पसंदीदा खेल था। नर्सिंग की पढ़ाई के दौरान वह हॉस्टल में रहती थी। हॉस्टल में मोबाइल की बिल्कुल भी अनुमति नहीं थी। क्रिकेट में दिलचस्पी होने के वजह से वह बार-बार मेरे पास आती और स्कोर पूछ कर चली जाती। इसी दौरान मैं अनायास ही श्रावणी की ओर खिंचा चला जा रहा था। मैं श्रावणी की सादगी और सरल स्वभाव का घायल हो गया। मन ही मन मैं श्रावणी को दिल दे बैठा। उस वक्त प्यार का इजहार करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। अस्पताल से छुट्टी होने के बाद मैं टाटानगर आ गया। मैं चाह कर भी श्रावणी के साथ बिताए गए उन छोटे-छोटे पलों को भूला नहीं पा रहा था। इसी बीच कुछ महीनो बाद संजोग से मैसेंजर पर हम दोनों की बातें होने लगी। एक दिन ऐसा आया, जब मैंने मुलाकात के लिए श्रावणी को प्रपोज किया और वह मान गई। इसके बाद कोलकाता में 17 अगस्त 2016 को श्रावणी से दूसरी बार मुलाकात होती है और प्यार का इजहार करते हैं। डॉ पार्थ बताते हैं कि यहीं से मुलाकात का सिलसिला शुरू होता है और आगे चलकर बात शादी तक पहुंचती है। लेकिन दोनों के मन में एक ही इच्छा थी कि दोनों में से कोई भी परिवार के खिलाफ जाकर कोई कदम नहीं उठाएंगे। परिवार वालों की रजामंदी के बाद साल 2019 में दोनों शादी के बंधन में बंध जाते हैं। डॉ पार्थ कहते हैं कि हम दोनों का कल्चर अलग होने के बावजूद एक दूसरे के कल्चर में ढल चुके हैं, इसमें भी कहीं ना कहीं एक दूसरे के प्रति अटूट विश्वास और प्रेम ही है। आज हमारी एक संतान भी है और हम अपने माता-पिता के साथ पूरा परिवार खुशहाली में जीवन बिता रहे हैं। डॉ पार्थ बताते हैं कि दोनों एक दूसरे से काफी दूर ड्यूटी में रहते हैं। इसके बावजूद हमारे बीच प्यार में कोई कमी नहीं है। एक दूसरे को खुलकर सपोर्ट करते हैं। डॉ पार्थ बताते हैं कि श्रावणी शादी के बाद पचास किलोमीटर दूर बंगाल जाकर नौकरी नहीं करना चाहती थी। श्रावणी को डर था कि कहीं उसकी नौकरी की वजह से पति-पत्नी में दूरियां ना बढ़े, ससुराल वाले नाराज ना हो जाए। लेकिन मैं और मेरे परिवार वालों ने श्रावणी के इस डर को दूर कर दिया। आज जब भी वह रामपुरहाट मेडिकल कॉलेज के लिए निकलती है, मैं और मेरे परिवार वाले हर तरह से सपोर्ट करते हैं। इसी तरह श्रावणी भी मुझे और मेरे परिवार वालों को काफी सपोर्ट करती है। मैं ईश्वर से कामना करता हूं कि हमारा प्यार इसी तरह बना रहे, एक दूसरे के प्रति विश्वास और ज्यादा मजबूत बने।इसी तरह प्यार की खुशबूओं से हमारी आंगन महकती रहे।
