कृपा सिंधु तिवारी (बच्चन) की रिपोर्ट
पाकुड़। आप घर बंद कर कहीं किसी काम से बाहर जा रहे हैं, तो ठहरिये। पहले अपने घर को ताले के भरोसे नहीं, बल्कि किसी को घर पर रख कर ही कहीं जाइए। कहीं ऐसा न हो कि छोटी अलीगंज के रामजी भगत जी जैसी स्थिति हो जाय। वे अपने काम से एक दिन के लिए बाहर गये, वापस आये तो ताला तोड़कर चोरों ने अपना हाथ साफ कर दिया था। उसी महल्ले की वीना देवी के यहां भी उसी रात चोर चर गये थे। ये उदाहरण मात्र है। पिछले कुछ सालों में ऐसा हर एक मोहल्ले में बंद घरों में चोरों ने अपना हाथ साफ किया। पिछले वर्षों में तो थाने से लोगों को ताकीत की गई थी कि कहीं घर बंद कर बाहर जाएं तो सूचना थाने को देकर जाएं। इधर के दिनों में पुलिस ने कई चोरों को पकड़ जेल चलता किया है। दर्जनों ऐसे मामले का का पुलिस ने उद्भेदन और गिरफ्तारी की, जिससे ऐसा लगा कि अपराध चोरी आदि बंद हो जाएगी। लेकिन चोर हैं कि हर कुछ दिनों की चुप्पी के बाद चुनौती दे ही जाते हैं। नगर थाना अनुसंधान में है, लेकिन जब तक वे चोर हाथ आएंगे, तब तक वे और कई जगह हाथ मार जाएंगे। पर इस वक्त पुलिस की ऐसी टीम जिले में है, जिनसे बच पाना मुश्किल है। पकड़े वे ज़रूर जाएंगे। आख़िर ऐसी कौन सी बात है कि चोर पकड़े जाते हैं, लेकिन चोरी बंद नहीं होती! आश्चर्य की बात है कि अंजाम का पता रहने के बाद भी अपराधी प्रवृत्ति ठहरने का नाम क्यूं नहीं लेता। ये अनुसंधान का विषय है। क्या अपराध के अनुसंधान में कोई कमी रह जाती है कि अपराधी सजा से बच निकलते हैं या फिर अपराधी के जेल जाते ही नई पौध तैयार हो जाता है। आखिर इस तरह की प्रवृत्ति के पीछे कौन सा कारण है। बेरोजगारी और गरीबी सिर्फ इसका कारण नहीं हो सकता। हां नशे की आदतें भी ऐसे अपराध के कारण बन सकते है। लेकिन नशे के कारोबार पर भी पुलिस ने वार किया है। लेकिन फिर भी कहीं न कहीं समाज और प्रशासन को इसके कारणों पर सोचना होगा। अपराध के अनुसंधान को तो पुलिस देखती ही है। इसके कारणों पर स्वयंसेवी संस्थाओं, बुद्धिजीवियों और राजनैतिक तथाकथित समाजसेवी पार्टियों को भी सोचना होगा। जेल गए अपराधियों के अपराध के प्रकार, प्रवृत्ति एवं उनके एडिक्शन को समझकर उन्हें समाज की मुख्य धारा में लाना होगा। आखिर अगर अपराधी यहां के बाहर से भी आकर अपराध कर निकल लेते तो भी उन्हें स्थानीय स्तर पर सूचना मिलती ही होगी। मतलब स्थानीय संलिप्तता के बगैर बाहरी अपराधी भी यहां अपराध नहीं कर सकते। अगर नक्सली और दुर्दांत अपराधियों को मुख्य धारा में लाने की सरकारी स्तर पर सफल प्रयास किए जाते हैं, तो यहां भी प्रयास होना चाहिए। आखिर हर दिन नई नई पौध को जेल में डालने पर सरकार पर भी बोझ ही तो बढेगा। मुफ्त की रोटी जेल में कितनों को परोसेगी व्यवस्था। ऐसे में ये जरूरी है कि पुलिस अपराध पर नियंत्रण और अनुसंधान के साथ सजा जल्द सुनिश्चित करवाए, पर साथ ही समाज के हर वर्ग के लोग अपनी जिम्मेदारियों को भी निभाए कि समाज अपराध मुक्त ही नहीं बल्कि अपराधी मुक्त हो।