ललन झा
अमड़ापाड़ा– ब्रिटिशकालीन डाक बंगला और इसके अधीन बीस साल पूर्व निर्मित प्रकृति विहार जैसे धरोहर को सहेजने की जरूरत है।किसी भी ऐतिहासिक विरासत को सहेजने और संवारने की जरूरत तब महसूसी जाती है जब कालक्रम में उसका अस्तित्व संकट में पड़ जाय.क्षेत्र के प्रबुद्ध वर्ग की जनभावना को यदि टटोला जाय तो इस धरोहर के उन्नयन व संवर्धन के प्रति व्यवस्था की उपेक्षा की टीस अनुभव की जा सकती है। अमड़ापाड़ा में आधुनिक सुविधायुक्त कोई भीआईपी रेस्ट हाउस नहीं है। वही पुराने डाक बंगलो का जीर्णोद्धार कर काम चलाया जा रहा है। ऐसे में रेस्ट हाउस का नवनिर्माण और पार्क प्रकृति विहार के सौंदर्यीकरण की दिशा में प्रशासनिक कवायद जनभावना का सम्मान होगा।
समाजसेवी व झारखंड आंदोलनकारी ने उपरोक्त विषय पर छेड़ा है मुहिम —
स्थानीय बुजुर्ग समाजसेवी नरेशकान्त साह ने बताया कि यहां वर्ष 2005 में जिले के पूर्व उपायुक्त भीएस मिश्रा ने अपनी इक्षाशक्ति से डाकबंगला परिसर में बासलोय नदी के तट पर पर्यटक स्थल का शक्ल देने की मनसा से प्रकृति की खूबसूरती के बीच एक प्रकृति-विहार नामक पार्क का निर्माण कराया था। आज यह घोर प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार है। पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने की कवायद तो दूर एक पार्क को जो बुनियादी सुविधाएं होनी चाहिए वो भी नहीं हैं। समाजसेवी श्री साह का मानना है कि बेहतरीन कुदरती छटा वाले इस पार्क पर प्रशासन की इनायत हो जाय तो यह भविष्य में रोजगार सृजन का एक हब हो जाएगा। बेरोजगारों को रोटी मिलेगी। पार्क में यहां चरणबद्ध कार्य होना था नहीं हुआ। कहा कि पिछले साल भर में मैंने प्रेसिडेंस, गवर्नर पीएम, सीएम आदि सबों को पत्राचार किया , परिणाम शून्य रहा। वहीं झारखंड आंदोलनकारी मोर्चा के प्रदेश संयोजक ने कहा कि यहां दो-दो कोल कंपनियां संचालित हैं। विस्थापितों का है। बेरोजगार रोजगार की तलाश में भटक रहे हैं। डब्लूबीपीडीसीएल हो या पीएसपीसीएल, डीबीएल हो या बीजीआर सभी सिर्फ अपना उल्लू सीधा करने में लगे हुए हैं। जहां दो -दो कॉरपोरेट कोल कंपनियां हों। वहां एक सार्वजनिक या सरकारी सुविधायुक्त रेस्ट हाउस का न बनना एक बड़ी विडंबना है। पार्क प्रकृति विहार का समेकित विकास न होना घोर आश्चर्य है। इस दिशा में अगर गंभीर प्रशासनिक पहल नहीं हुआ तो जन आंदोलन का रूख अख्तियार करेंगे।
करेंगे बेमियादी भूख हड़ताल—
समाजसेवी श्री साह ने अपनी तीखी प्रक्रिया में अपने प्रेषित ज्ञापनों का हवाला देते हुए कहा कि प्रशासन सिर्फ भरोसा देता रहा है। समस्याओं को जमीनी शक्ल दिया ही नहीं जाता है।जनभावनाओं को सम्मान मिलना चाहिए।अगर उपरोक्त मांगों पर पहल नहीं हुआ तो अनिश्चित कालीन उपवास पर बैठ जाएंगे।