कृपा सिंधु बच्चन की रिपोर्ट
पाकुड़। ऐसे बिजली का कटना एक सामान्य सी बात है। लेकिन इन दिनों पाकुड़ में बिजली की आंख मिचौली ने मानो गर्मी के इस मौसम में उपभोक्ताओं पर बिजली गिरा रखी है। आम लोगों का कहना है कि ठंड के मौसम में बिजली सामान्य रूप से यहां ठीक रहती है। लेकिन जैसे गर्मी दस्तक देती है, बिजली बेवफाई पर उतर जाती है। सामान्य तौर पर वर्षा ऋतु में बिजली के गुम होने के कुछ सामान्य कारण होते हैं। पाकुड़ में विगत कुछ वर्षों से बिजली लगभग ठीक ठाक रहती थी। हांलांकि पाकुड़ ने उस दौर को भी देखा है, जब कई कई दिनों तक बिजली का इंतजार करना पड़ता था। फिर एक समय ऐसा भी आया जब पूरे राज्य के बनिस्पत पाकुड़ में बिजली की उपस्थिति एक उदाहरण बन गया था।
कालांतर में फिर से बिजली की आंख मिचौली ने आम जनता को परेशान कर रखा है। पूरे साल मेंटेनेंस के नाम पर बिजली का घंटों गायब रहना आम बात है। आखिर कैसे और किस तरह का मेंटेनेंस और मरम्मत कार्य चलता है, कि थोड़ा बहुत पानी पड़ने और हवा चलते ही आंख मूंद लेती है बिजली रानी। ऐसे पाकुड़ ग्रामीण क्षेत्रों और सभी प्रखंडों में इस भीषण गर्मी के दौरान बिजली ने तो बिजली गिरा रखी है। जिला प्रशासन ने बिजली की सुचारू आपूर्ति के लिए कई बैठकें की और कड़े निर्देश दिए, लेकिन सभी ढाक के तीन पात सावित हुए।
आश्चर्य इस बात की है कि जब भी आम आदमी इस प्रचंड आंख तरेरती गर्मी में अपने काम से निवृत हो आराम की सोचता है, बिजली गुम हो जाती है।
खाश कर रात में गृहस्थी के काम से थकी-मांदी महिलाओं और सुबह जल्द उठकर स्कूल जाने वाले बच्चों के लिए आराम करने के ऐन वक्त पर बिजली की बेवफाई तो कहर बरपा जाती है। अगर सोसल मीडिया पर चलती चर्चाओं को माने तो कहा जाता है कि आमलोगों के हक की बिजली काट कर रात में उन खनन माफियाओं को उपलब्ध करा दिया जाता है, जो दिन के उजाले में अपना उत्पादन कार्य बंद रखते हैं। कहा तो यह भी जाता है बिजली के गुम रहने पर रात के अंधेरे में नियम विरुद्ध ओवर लोड पत्थर की गाड़ियों को निर्बाध गुजरने की एक खाली स्पेस भी उपलब्ध हो जाता है।कारण जो भी हो सालों भर मरम्मत की कहानी गढ़ता, इस मौसम में पूरे जिले के शहर, प्रखंड और ग्रामीण आम जनता को बिजली ने परेशान कर रखा है। मरम्मती के दौरान तो बिजली के जाने और आने की खबर सोसल मीडिया पर दे भी जाती थीं, लेकिन इस भीषण गर्मी में बिजली इतनी बदचलन बन गई है कि आने जाने की खबर तक देना मुनासिब नहीं समझती।
