कृपा सिंधु बच्चन@समाचार चक्र
पाकुड़। लिट्टीपाड़ा में शनिवार को योग दिवस के दिन आदिवासी समाज के एक संगठन के मंच से हेमंत सरकार के विरुद्ध योग साधा गया। आदिवासी समुदाय को जागृत होकर अपने अधिकार के लिए सरकार के विरुद्ध योग साधने की प्रेरणा देने में पूर्व मुख्यमंत्री सह उड़ीसा के पूर्व राज्यपाल रघुवर दास कितने सफल रहे ये तो वक्त बताएगा। लेकिन जब वे मुख्यमंत्री थे, तो उन्होंने लिट्टीपाड़ा को गोद लिया था तथा वहां के सुदूर गांव के घर-घर तक पेयजल पहुंचाने की योजना की नींव रखी थी। यह महत्वाकांक्षी योजना क्यूं दम तोड़ गई, अपनी पूर्णता को प्राप्त क्यूं नहीं हो सकी? अगर इस सवाल पर वे ध्यान देते और दुर्भाग्यवश दोबारा सरकार में न आ पाने की स्थिति के बाद उन्होंने इसके लिए अपने स्तर से क्या पहल की? इसे ही लोगों को समझा पाते तो….। आजादी के इतने सालों बाद बिहार को मलाई और झारखंड बनने के बाद राज्य को बहुत कुछ देने वाले लिट्टीपाड़ा के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य, शिक्षा और सड़क से ज्यादा किसी बुनियादी आवश्यक आवश्यकता की अगर अभाव है, तो वह है पेयजल की।
रघुवर सरकार में अगर लिट्टीपाड़ा में कोई सराहनीय योजना की बात की जाय तो दो सौ सत्रह करोड़ की पेयजल आपूर्ति योजना की नींव ने उम्मीद की एक किरण जगाई थी। लेकिन हमेशा से उपेक्षित रहे इस क्षेत्र में यह योजना भी सरकारी परंपराओं की भेंट चढ़ गई। गोद में लिए बच्चे की मां को अगर कोई दूसरा काम आ पड़े तो अपने बच्चे को किसी और की गोद में सुरक्षित रख वह दूसरा काम निपटाती है। सवाल है कि आखिर लिट्टीपाड़ा के पिछड़ेपन को दूर कर विकास की राह पर आगे ले जाने के लिए उन्होंने अपनी हार के बाद किस ऐसे नेता की गोद में दे गए थे कि लिट्टीपाड़ा की पिछड़े रहने की स्थिति बदलती और विकास की राह चल पड़ती! खैर राज्यपाल बनने के बाद एक बार फिर सक्रिय राजनीति की भूमिका में आए लिट्टीपाड़ा को संथाल परगना में भजपा की जमीन बनाने की कयावद के बीच अगर विकास के रास्ते पर आगे बढ़ा सकें तो फिर बात बने। खैर फिलवक्त तो यही कहा जा सकता है कि अपने पूर्व मुख्यमंत्री को देखकर और एक सफल कार्यक्रम के मद्देनजर एक बार फिर से लिट्टीपाड़ा की सुदूर ग्रामीणों में एक आस जगी है, लेकिन हेमंत सोरेन सरकार की लोकलुभावन योजनाओं से अलग कर भाजपा के कमल को खिला पाने में वो कितना सफल होंगे, यह आगामी चुनाव परिणाम के गर्भ में है।