समाचार चक्र संवाददाता
पाकुड़। झारखंड ही नहीं, बल्कि पूरे देश का सबसे पिछड़ा प्रखंड में शामिल लिट्टीपाड़ा के एक छोटे से गांव मधुबन से निकलकर निर्मल मुर्मू ने पीएचडी की डिग्री हासिल कर गांव का नाम रोशन किया है। आदिवासी समाज से आने वाले निर्मल मुर्मू की इस उपलब्धि से समाज के लोग भी खुद को गर्वित महसूस कर रहे हैं। यह सोचकर कि निर्मल मुर्मू के नाम के आगे अब डॉक्टर जुड़ गया है। पाकुड़ जिले के तलहटी में बसा इस छोटा सा गांव मधुबन में पले-बढ़े निर्मल मुर्मू के बारे में कभी किसी सोचा भी नहीं होगा कि वह गरीब परिवार से निकलकर जिला का नाम रोशन करने के साथ साथ युवाओं का प्रेरणा स्रोत भी बनेंगे। लेकिन निर्मल मुर्मू ने ऐसा ही कर दिखाया है।जिले का सबसे कम साक्षरता वाला लिट्टीपाड़ा प्रखंड के मधुबन गांव में जन्मे निर्मल मुर्मू ने विपरीत परिस्थितियों का सामना करते हुए एक ऐसा मुकाम हासिल किया है, जो युवाओं के लिए वाकई में प्रेरणादायक है। उनको शिक्षण जगत के सबसे बड़ी डिग्री में से एक पीएचडी की डिग्री प्राप्त हुई है। इस संबंध में जानकारी देते हुए डॉ निर्मल मुर्मू ने बताया कि मंगलवार को विश्वविद्यालय संताली विभाग में आयोजित साक्षात्कार सेमिनार के पश्चात उन्हें यह डिग्री दिया गया। इसके लिए विषय विशेषज्ञ के रूप में केंद्रीय विश्वविद्यालय बोलपुर शांति निकेतन से डॉ दुखिया मुर्मू उपस्थित थे। निर्मल मुर्मू ने डॉ सुशील टुडू के निर्देशन में शोध कार्य संपन्न किया। उनका शोध का विषय था गोराचांद टुडू: व्यक्तित्व एवं कृतित्व। अब से डॉ निर्मल मुर्मू कहलाएंगे। डॉ निर्मल मुर्मू ने अपने पढ़ाई की शुरुआत गांव के प्राथमिक विद्यालय से किया था।

राजकीयकृत उच्च विद्यालय लिट्टीपाड़ा से मैट्रिक, केकेएम कॉलेज पाकुड़ से इंटर तथा स्नातक की डिग्री हासिल किया है। उन्होंने एमए की डिग्री साहिबगंज महाविद्यालय साहिबगंज से प्राप्त किया है। निर्मल मुर्मू ने एमए के दौरान ही नेट और जेआरएफ की परीक्षा भी पास किया है। वर्तमान समय में संताल परगना महाविद्यालय दुमका में बतौर सहायक प्राध्यापक के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। वह समाज सेवा के साथ-साथ साहित्य सृजन और फुटबॉल खेल में रुचि रखते हैं। अपने समाज को शिक्षित करने, अंधविश्वास से मुक्ति दिलाने और विकास के पथ पर अग्रसर बढ़ाने के लिए वह सामाजिक क्षेत्र में भी काफी सक्रिय रहते हैं। इसके साथ ही वह एक आंदोलनकारी भी हैं। साहित्य प्रेमी के तौर पर अपनी भाषा में कई कविता तथा कहानी है लिख चुके है। उनका हिंदी में भी कई आलेख प्रकाशित है। इन्होंने अपना पूरा श्रेय अपने शोध निदेशक डॉ सुशील टुडू, संताली विभाग के वरीय प्राध्यापक डॉ शर्मिला सोरेन के साथ-साथ अपने माता-पिता को दिया है।उन्होंने कहा कि आज के युवाओं को पढ़ाई लिखाई पर अधिक से अधिक ध्यान देना चाहिए, उन्हें नशा एवं बेवजह समय व्यवस्थित नहीं करना चाहिए। अपने मूल्यवान समय को अपने जीवन के साथ-साथ समाज के उत्थान में लगाने की जरूरत है, क्योंकि समाज को युवाओं पर अधिक उम्मीद रहती है।
