पूर्णेन्दु कुमार बिमल
पकुड़िया– चैत्र नवरात्र के चौथे दिन शुक्रवार को प्रखंड के फुलझींझरी स्थित वैष्णवी माता दुर्गा मंदिर प्रांगण में मां दुर्गा के चौथे स्वरूप माता कुष्मांडा का पूजन व पाठ विधिवत मंत्रोच्चारण के साथ किया गया।अहले सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ मंदिर परिसर में पूजा करते देखने को मिला।भक्ति में सराबोर श्रद्धालुओं ने पूजन कर मां दुर्गा से मंगल की कामना की।वहीं पुरोहित सह जजमान के द्वारा श्रद्धा भाव से भक्ती माहौल में पूजा पाठ करवाया गया।नवरात्रि का उपवास कर रहे पुरोहित सह जजमान ने पूजा का श्रवण किया।श्रद्धालुओं के द्वारा माता को पुष्पांजलि अर्पित कर फूल,बेलपत्र,फल,मिष्ठान आदि का भोग लगाया गया।श्रद्धालुओं ने माता रानी के प्रतिमा के समक्ष आरती की और प्रसाद ग्रहण किया।
मां कुष्मांडा की उपासना से मिलती है सिद्धि और यश
मां दुर्गा के चौथे स्वरूप मां कुष्मांडा के उपासना से भक्तों को सभी सिद्धियां मिलती है। मां कुष्मांडा की कृपा से लोग निरोग होते हैं और आयु व यश में बढ़ोतरी होती है। शांत-संयत होकर, भक्ति-भाव से मां कुष्मांडा की पूजा करने से बुध ग्रह मजबूत होता है और बुद्धि प्रखर होती है।
नवरात्रि के चौथे दिन होती है मां कुष्मांडा की पूजा
चैत्र नवरात्र के चौथे दिन माता कुष्मांडा की पूजा की जाती है।अपनी मंद मुस्कान द्वारा ब्रह्मांड की उत्पत्ति करने के लिए करन देवी के इस रूप को कुष्मांडा कहा गया है। ऐसी मान्यता है कि जब दुनिया नहीं थी,तब इसी देवी ने अपने हाथ से ब्रह्मांड की रचना की थी।इसलिए इन्हें सृष्टि की आदिशक्ति भी कहा जाता है।मां कुष्मांडा की आठ भुजाएं है,उनके हाथों में कमंडल,धनुष,बाण,कमलपुष्प,अमृत पूर्ण कलश,चक्र,गदा व जप माला है। देवी का वाहन सिंह है।
कैसे पड़ा कुष्मांडा नाम
आराध्य नवदुर्गा का ये चौथा स्वरूप है।अपनी हल्की हंसी से ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इनका नाम कुष्मांडा पड़ा है। ये अनाहत चक्र को नियंत्रित करती है। मां की आठ भुजाएं हैं,इसलिए इन्हें अष्टभुजा देवी भी कहते हैं। संस्कृत भाषा में कुष्मांडा को कुम्हड़ा कहते हैं। इसीलिए मां कुष्मांडा को कुम्हड़ा विषेश रूप से प्रिय है।।